अपोलो चंदा के देश में | Apolo Chanda Ke Desh Men

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२६ अपोलो : चन्दा के देक्ष में इसलिए १८६५ में जूल वन ने “पृथ्वी से चाँद तक” नाम से जो अपनी पुस्तक लिखी वह ठोस वेज्ञानिक सिद्धान्तों पर आधारित थी । उसमें दंवी चमत्कार नहीं था । पुस्तक लिखने से पहले अपने एक रिहतेदार से, जो विज्ञान शिक्षक था, उन्होंने बहुत कुछ हिसाब लगाने के लिए कहा । उसने जो हिसाव लगाये उनके आधार पर उसने पुस्तक लिखी । जूल वर्न की इस पुस्तक में एक बहुत बड़ी तोप में से एक ट्रेन दादी जाती है। तोप में से निकलते ही ट्रेन का राकेट चाल्‌ हो जाता है और वह बहुत तेज गति से, ४०,००० किलोमीटर प्रति घण्टे, अपने यात्रियों सहित चाँद की ओर बढ़ता है । मार्ग सही रखने के लिए यह वीच-बीच में राकेट छोड़ते जाते हैं । इसमें वठकर नायक चन्द्रमा का चक्‍कर काटकर धरती पर वापिस आ जाता है। वह चन्द्रमा पर उतरता नहीं । यह पुस्तक इतनी मजेदार है कि वहुत-से लोग इसे बिलकुल सच्ची घटना समभने लगे । कुछ लोग तो वे की ट्रेन में यात्रा करने के लिए उतावले हो गये । अगर तुम किताबों को पढ़ो तो तुम्हें इसमें बहुत-सी बातें गलत लगेंगी । पर इसमें सबसे सही वात यह है कि घरती के गुरुत्वाकपंणा वल से छुटकारा पाने के लिए किसी भी चीज को २०,००० मील ( ४०,००० किलोमीटर ) प्रति घन्टे की गति से ऊपर उठना पड़ेगा । दूसरा सही अंदाज यह है कि अंतरिक्ष में दिशा बदलने अथवा अपनी गति को कम या अधिक करने के लिए यान को राकेट ही छोड़ने पड़ेंगे । भाग्य की वात देखो । जूल वन की तोप जिस स्थान पर रखी थी लगभग उसी स्थान (केप कनेडी) से मैं उड़ान भरता हैं। अब जरा किताब की गलतियों पर ध्यान भी दें । तुम पढ़ चुके




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