गौरव - शिखर | Gaurav - Shikhar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
156
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हि पता ने राहत की सादे सी
लाहौर मे सुशासन वी स्थापना हुई और सब कौमों ने राहः की सांस लीपए-+०-«
» '<७ धीए
कसू र, जम्बू, स्थालकोट, दिलावरगढ जादि वी फतह स्7क0्कल््का:
लाहौर पर लोक-प्रिय शासन की स्थापना कर लेन से महाराज रणजीत्तिह वा
प्रभाव बहुत बढ गया था और वह दूसर शजा तथा नवाधा वी नजरोम कादे
वी तरह क्सक्त जा रह थे। बीस वप वी आयु मे, उनती इस सफलता पर दुसर
शासका वे सीने पर साप लाटने लग गया था व उनके विरुद्ध पडयन वरन पर
लग गए थे। एवं दिन रामगढिया मिसल के जस्सापसिह, अमतसर के भगी मिसल
के गुलाबसिह, गुजरात वी भगी मिसल वे साहबसिह, वजी राबाद वे जारावरसिंह्
और कसूर के निजामुद्दीन न अमतसर स लाहार की दिशा म रणणीततिह के
विरुद्ध कूच कर दिया । वे जानत थे वि युद्ध के मदान मे महाराज रणजीतसिंह
से लाहा लेना आसान काम नही है, अत उ होंने एक पड्यात्र की रचना वी |
उहनि महाराज को सदेश भेजा कि वह हमसे भेंट कर जाये। भेट होते के बाद,
आपसी मन मुटाव भी दूर हो जायेगा और वे अपने घरा को वापस चले जायेंगे।
महाराज ने उनका निमत्रण स्वीवार वर लिया और उनके पडय त्र को विफल
करने की योजना भी बना ली । वह इतन चुनीदा सिपाही साथ लेबर भेंट करन
गए कि कसी का साहस नही हुणा कि महाराज वी ओर हाथ बढाता । इसवः
बाद, खुलक्र तडाई तो नही हुई, पर भीतरी युद्ध कायम रहा। अधिक शराब
पीने से गुलावर्धिह की मत्यु हो गई। उसका :लावा महाराज के हाथ लगा। इसी
बीच महाराज को मालूम हुआ कि पडय श्र की जड मे कसूर का निजामुद्दीन था।
अत महाराज मे फ्सूर पर आन्षमण कर दिया। नवाब निजामुद्दीन उनव॑ पैरा
पर आ गिरा | महाराज ने उससे कर सेव जोर मागन पर सैनिक सहायता देन के
के आश्वासन पर उसको अपन अधीनस्थ शासव बना लिया ।
इसके बाद, महाराज नारूवाली, बेख्चाल तथा जस्सरवाल हात हुए जम्बू पहुचे।
जम्मू से चार मील वी दूरी पर डरा डाला । भयकर परिणाम वी कल्पना करने,
जम्मू का राजा बीस हजार रपय तथा एक हाथी महाराज का भेंट करने आया।
उसका अपना क्षत्रप बगावर वह स्थालकोट वी आर बढ | स्थालकोट का मुस्लिम
शासक एक ही चपेट मे हार मान गया । इसके बाद, वह दिलावरगढ वी ओर
बढ़े 1 उसको एक झटबे मे जीत लिया गया। यहा मा सोढी शासक बेसरसिह
अधीन हो यया 1
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