पर्यावरण प्रकृति और मानव | Paryavaran Prakriti Aur Manav
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
177
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(क) अर्जां प्रवाह चक्र +४
कसी भी पारित मे जैविव क्रियाओ की क्रियावित (कु/८) करने
वे लिये प्रत्येक जीव को ऊर्जा को आवश्यकता रहती है | अततोगत्त्ववा यह्
ऊर्जा सौर विविरण से ही प्राप्त हाती है। सौर ऊर्जा स्वपोषी जीवधारियों
के द्वारा ही ग्रहण वी जा सकती है और परपोषियों को आहार के रूप मे
स्थानान्तरित की जाती है। इस भाति कसी भी पारिस्थितिक तऋत्र में
'ऊर्ना का प्रवाह! आदह्वार श्श खलाओ के द्वारा सम्प न होता है। ऊर्जा का
प्रवाह अचत्रीय तथा एक ही दिशा म॒प्रशस्त होने वाला क्रम है, जिसे
विस्तार से समझने की आवश्यकता है ।
उपमोक्ता
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चित्र---ऊर्जा प्रवाह चक्र
सौर-विक्षिरण ऊर्जा या एक निश्चित परिमाण पृथ्वी के बाह्य वायु-
मण्डलीय पटल पर पहुचता है जिसे सोर-अभिवाह (5० गाए) वहूते है ।
सौर अभिवाह का मान मौसम विज्ञान के आक्डो के आधार पर 1 94
ग्राम कैलोरी/से मीः/ मिनट होता है। पृथ्वी ग्रह के घूमने के! कारण, एक
विश्चित स्थान पर इस सौर-अभिवाह में परिवतन आते रहते हैं, यथा ऋतु
परिवतन होते हैं। जब सौर ब्रिक्रिण वायुमण्डल से प्रवाहित होते हैं तो
इनके लगभग 40 श्रतिशत भाग को धूल व बादलों के कारण परिवततित कर
दिया जाता है, 10 प्रतिशत को जओोजोन, आक्सीजन तथा जल वाष्प
अवशोपित कर लेते हैं और शेप 50 प्रतिशत अश ही भूतल पर पहुच पाता
है गीगर 1950) । इत्त प्रतिशत का भी कुछ अश भूवल की चमकती सतह
परिवर्तित कर देती है । वहने का तात्पय यह है कि लगभग 33 प्रतिशत
भाग पृथ्वी पर पहुच कर, पादपों द्वारा प्रकाश-संश्लेषण क्रिया के लिय प्रगुकक्त
होता है। विभि न॒वैज्ञानित्रा द्वार्य प्रदत्त कुछ सदर्भित आकड़े नीचे दिय
जा रहे है --
पयावरण एक वेशानिव' अध्ययव|25
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