मृच्छकटिकम् | Mirchchhakatikam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १७ ) शेसो अवस्था में यह कहना कठिन है. कि सोमिल ने “मृच्छक्रटिक' के कर्ता शद्रक को हो अपनी कया का आश्रय बनाया है अथवा किसी अन्य शद्क को। इसके अतिरिक्त दूसरी बात यह है कि राजशेखर ने जिन दो व्यक्तियों -रामिल और सोमिल को दद्ककथा के कर्ता के रूप में उल्लिखित किया है उनमें रामिल की प्रधानता मालूम पड़ती हैं । वे हो इस सन्दर्भ में प्रथमस्यानीय प्रतोत होते हैं। ऐसी अवस्था में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि कालिदास ने रामिल (जो क्ि प्रधान हैं ) का नाम निर्देश न कर सोमिल ( जो कि अप्रधान हैं ) का हो नामोल्लेख क्‍यों क्रिया ? क्‍या इससे इस बात का संकेत नहीं मिलता कि काडिदास के सोमिल ( सौमिल्ल ) रामिल-सोमिल में आये हुए सोमिल से भिन्न हैं। ऐसो अवस्था में इस प्रमाण के आधार पर यह कंसे सिद्ध किया जा सकता है कि श॒द्रक ई० संवत्‌ से पहले के कवि हैँ । अब हम दूमरो श्रेणी के मत को समीक्षा करते हैं। विद्वान्‌ मानने छगे हैँ कि भास का 'दरिद्रचारुदत्त” 'मृच्छकटिक को अपेक्षा प्राचीन है। 'मृच्छक्टिक' को रचना भास के 'दरिद्र वारुदत्त' के आधार पर हुई है। यह मान लेने पर भासका काल 'मुच्छ- कटिक! की ऊपरी सीमा सिद्ध होता है। भास का काल कालछिदास के समय पर आश्रित है । कालिदास ने 'मालविक्रास्निमित्र' को भूमिक्रा में मास का उल्लेख किया है। किन्तु कालिदास का हो काल अभी निश्चित नहीं हुआ है । इनके विषय में निश्चित रूप से केवल इतना हो कहा जा सक्रता है कि ये ई० पू- १०० से लेकर ई० अ० ६०० के बोच किसी समय हए थे। इस लम्बी अवधि में कुछ विद्वान्‌ इन्हें ई० पू० १०० में और कुछ विद्वान ई> अ> ४०० में मानते जो विद्वान्‌ इन्हें ई+ पू* १०० में मानते हैं उनके अनुसार भास का काल ई० पू० २०० के आस-पास होना चाहिये । जो विद्वान कालिदास को ई० अ> ४०० में मानते हैं उनके अनुसार भास का समय ई० अ० ३०० के करीब होगा । भास के काल का ही भांति मनुस्मृत का भो कार ई० पू० २०० या ई० अ> ३०० माना गया है। कुछ लोग ई० पूृ० २०० में मनुस्मृति की रचना बतलाते हैं तो कुछ लोग ई> अ? ३०० में । जो भी हो दोनों प्रमाणों से 'मृच्छकटिक” की पूर्व सीमा ई० पू+ २०३ या ई० अ० ३०० निर्धारित होतो है । पूर्व सीमा का विचार कर लेने के वाद अब नीचे को सीमा पर आइये । डा० कौथ का कथन है कि पह सन्देडास्पद है कि 'मृच्छुकटिक” कालिदास से प्राचीन हैं या अर्वा- चोन * जैकोदी का विचार है कि 'मुच्छकटिक' कालिदास से अर्वाचीन है. । आलोचक 1 - 186 58157 12787112 पु० १२८ | 2--1%८ 5275४110 107»०799 पु० १३१, टिप्पणी १॥




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