प्रतिष्ठा रत्नाकर | Pratishtha Ratnakar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21 MB
कुल पष्ठ :
770
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रस्तावना १३
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होना लिखा गया है, उनको अर्घ प्रदान करना भयंकर भूल है |
यद्यपि प्रतिष्ठा पाठों मे उनको “अर्घ्य गहाण गृहाण' इन शब्दों के द्वारा जो अर्घ
देने की वात लिखी है वह इस अभिप्राय से लिखी है कि जैसे हम लोग पूजा के अंत
मे जयमाला पढते समय उपस्थित समुदाय को अर्ग देकर पूजा में शामिल होने का
उन्हे शुभ अवसर देते हैं इसी प्रकार इन्द्र ने जिन सेवको को (देवों को) उन कल्याणको
में अपना अपना नियोग (कार्य) करने की आज्ञा दी है वह उन्हे भी भगवान की पूजा
में सम्मलित कर पूजा करने का शुभ अवसर देता है न कि उनकी पूजा करता है |
जिनागम के अनुसार भवनवासी,, व्यंतर, ज्योतिष देव इन तीनो निकायो मे कोई सम्यक्
दृष्टि जीव जन्म नहीं लेता किन्तु उनमे ऐसे समारोहो के प्रसंग पर किसी को सम्यक्
दर्शन हो भी सकता है, तथापि इन्द्र जैसी उत्कृष्ट पदवी के धारक सुरेन्द्र के द्वारा
अपने उन सेवको को अर्घ देकर उनको जिनेन्द्र की तरह मंत्र बोलकर बराबरी से अर्घ
प्रदान करने की क्रिया जिनागम के सर्वथा विरुद्ध है। सरागी देवता होने से जिनागम
मे उनकी पूजा स्वयं निषिद्ध है।
यदि जैसे प्रतिष्ठा के इन्द्रादि पात्रो की स्थापना योग्य व्यक्तियों में की जाती है इसी
प्रकार इन शासन देवताओ की स्थापना भी योग्य व्यक्तियों में की जाये तो कोई भी
सीवर्म इन्द्र बनने वाला व्यक्ति उनको अर्घ-दान कर प्रजा नहीं करेगा, उसका स्वयं
विवेक जागृत होगा और ये विसंगतियां स्वयं दूर हो जावेगी । आशा है प्रतिष्ठाचार्यो
का ध्यान इस भूल के संशोधन की ओर जायेगा । इस प्रतिष्ठापाठ मे जिनागम के अनुकुल
बजा पाठ का ध्यान रखा गया है इसके लिए प्रतिष्ठाचार्य श्री गुलावचंद जी 'पुष्प' धन्यवाद
के पान्न हैं ।
एक विषय प्रतिष्ठाचार्यो के लिए ओर भी विचारणीय है। भगवान के पांच कल्याणक
छोजाने पर वह मूर्ति सिद्धपरगेष्ठी की हो जाती है। अरिहंत परमेष्ठी केचार ही कल्याण
छोते हैं पर हम अरिहत परमात्मा की प्रतिमा गानकर मंदिरों मे रथापित करते हैं यह
परंपरा उत्तर-भारत भे चली आ रही है। जहांतकमुझे ज्ञात हैदक्षिण भारत के प्रतिष्ठाचार्य
फेवयल चार कल्याणक करते है |
पुदलखण्ड मे 'गजरथ' के साथ प्रतिष्ठा होती है और गजरथ केवली भगवान के
विद्र फा प्रतीक है ऐसी स्थिति में यह विचारणीय हो जाता है कि प्रतिमा के पांचो
फल्याण शो जाने के बाद विहार की क्रिया केसे सं ह्लै विद्वानों
संगत है । यह विषय भी विद्वानों
लिए पिचारणीय है | द्वानों के
जया...
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