शुक्ल - रामायण भाग - 3 | Shukl Ramayan Bhag - 3

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Shukl Ramayan Bhag - 3  by पं. शुक्लचन्द्र - Pt. Shuklachandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ +३ ) दोहा--नण्लो छा ब्याययान छुन, अल बल दो गया ढेर । पि पति योला गज्ञ कर, जसे बन्न में शेर ॥ दग्पी प्रपंची यहां करता पया झ्र नाद। भेर बनाने का तुझे श्भी मिलेगा स्वाद ॥ चौक-अ्भी मिलेगा स्थाद काल, भक्तण तुमको श्राता है। नफनी बन कर भाप धौंस, ' खर हम को दिखलाता दे ॥ अवकाश नहीं है बचने का, फ्या मन में पछताता है। मरने के डर से शअ्रव, फ्यो. परीद्धे हठता ज्ञाता है ॥ परीव का गाना काल तेरा उठा लाया तुमे में आज कट्ठता हूं, नद्ोड़ श्रव तुमे चिट्िया गया वाज कह्ठता हूं ॥ १॥ कहां श्ाकर के फेलाई दे तूने मपनी यह माया, चलेगी पेश ना तेरी सरे सामाज कद्दता हैँ ॥२॥ चला जा श्रव भी सन्मुख से, फटक ना सामने मेरे, नहीं तो मौत का तुभको मित्लेगा ताज फद्दता हैं ॥ ३ ॥ सम्मल कर आ खड़ा द्वोजा देख यह चोट क्षत्रिय फी, भर में इथने वाला तेरा है जद्दाज फद्दता हूं ॥४॥ >ररनीशिकवाा-




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