बलख बुखारा | Balakh Bukhara
श्रेणी : संदर्भ पुस्तक / Reference book
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21 MB
कुल पष्ठ :
340
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)-
. बलबबलारे की... २६१ लड़ाई ,
श्रव तुम वले जाथो जोगा पर उप्तकी धीर बन्धाओं
देखूंगा अब लशकर को सबका खटका देऊं मिशय ॥
बोला मुन्शी तरदारों से शोर ज्वानों से कहा. छुनाय ॥
एक कदम पर एक अशरफो दो दो कदम अशरफो चार ॥
पांच कदम जो बढ़े भ्रगाड़ी उसको दू' जाबीर बताये ॥
लोभ की मारी यह दुनियां हे ज्ञत्री गये लोभ में छाय ॥
शीश इथेली पर रख लीना रटना लगी शाम से जाय ॥
छोड़ भरासरा जिन्दगानी का सारे बढ़े अगाड़ी जाय ॥
अली भ्रली करके बढ़े रहेले सहयद बढ़गये मुगल पठान ॥
हर दर करके ,्ञत्री बदूगये जिनका लगा राम से ध्यान ||
: एक तरफ को मुन्शी बढ़गया एकतरफ जस्सराज का लाल
जेसे भेड़िया पड़े रेवड़ में चीर फाड़ कर करे इलाल ॥|
फोज के अन्दर मलखे घुह गया गाजीमनखुख पर असवार
पैदल से तो पेदल भरढ़ गये अखबारों से झड़े सवार ॥
सूंड लपेद हाथी हो गये होदे मिले बरावर जाय ॥|
पीलवान थ्रापस में लद़ रहे अपना अंकुश रहे चल्ाय ॥
जेसे तोता भराम को काटे ओर दराती काटे ताग॥
ऐसे ही काटे सिरसे वाला जेसे कामन खेले फाग ॥
नदी नवेदा का जल गरजे ओर गंगा की गरजे कार ॥
पलखे वाली भ्रव मापटों में ज्ञत्री छोड़ भगे इथियार ॥
एक को मारे दो गिर नावें तीसरा दहशत से गिर जाय ॥
यद्ट गत करदी है मलखे ने दल पूला सा दिया विछाय ॥|
दहने वांवे ज्षत्री मारे बीच में मलखे करे हलाल ॥
मारता जावे बढ़ता जावे बेदा बच्छुराज का लाल ||
न चनन > ० असर मन
User Reviews
No Reviews | Add Yours...