बलख बुखारा | Balakh Bukhara

Balakh Bukhara by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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- . बलबबलारे की... २६१ लड़ाई , श्रव तुम वले जाथो जोगा पर उप्तकी धीर बन्धाओं देखूंगा अब लशकर को सबका खटका देऊं मिशय ॥ बोला मुन्शी तरदारों से शोर ज्वानों से कहा. छुनाय ॥ एक कदम पर एक अशरफो दो दो कदम अशरफो चार ॥ पांच कदम जो बढ़े भ्रगाड़ी उसको दू' जाबीर बताये ॥ लोभ की मारी यह दुनियां हे ज्ञत्री गये लोभ में छाय ॥ शीश इथेली पर रख लीना रटना लगी शाम से जाय ॥ छोड़ भरासरा जिन्दगानी का सारे बढ़े अगाड़ी जाय ॥ अली भ्रली करके बढ़े रहेले सहयद बढ़गये मुगल पठान ॥ हर दर करके ,्ञत्री बदूगये जिनका लगा राम से ध्यान || : एक तरफ को मुन्शी बढ़गया एकतरफ जस्सराज का लाल जेसे भेड़िया पड़े रेवड़ में चीर फाड़ कर करे इलाल ॥| फोज के अन्दर मलखे घुह गया गाजीमनखुख पर असवार पैदल से तो पेदल भरढ़ गये अखबारों से झड़े सवार ॥ सूंड लपेद हाथी हो गये होदे मिले बरावर जाय ॥| पीलवान थ्रापस में लद़ रहे अपना अंकुश रहे चल्ाय ॥ जेसे तोता भराम को काटे ओर दराती काटे ताग॥ ऐसे ही काटे सिरसे वाला जेसे कामन खेले फाग ॥ नदी नवेदा का जल गरजे ओर गंगा की गरजे कार ॥ पलखे वाली भ्रव मापटों में ज्ञत्री छोड़ भगे इथियार ॥ एक को मारे दो गिर नावें तीसरा दहशत से गिर जाय ॥ यद्ट गत करदी है मलखे ने दल पूला सा दिया विछाय ॥| दहने वांवे ज्षत्री मारे बीच में मलखे करे हलाल ॥ मारता जावे बढ़ता जावे बेदा बच्छुराज का लाल || न चनन > ० असर मन




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