आरुणी | Aaruni
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
130
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)व्यक्तित्व और प्रभावशाली हो गया था। उसमें और गंभी रता आ गई थी । लोग
उससे डरने लगे थे। उसका सम्मान बहुत बढ़ गया या। यह विश्वास दृढ हो
गया था कि उसे कोई लालच, भय, मोह, काम, दाम, क्रोध आदि स्याय के पथ
से विचलित नही कर सकते ।
उसका सहज ही लोगों से मैत्री कर लेने वाला स्वभाव चला गया था।
इसका उसे दुःख था। वह अब अकेला-सा रहने लगा था, क्योंकि लोगो की बातों
में उत्तका मन नहीं लगता था। जिन बातों पर लोग जोद्य में आ जाते थे, लड़
पड़ते थे या किसी के कृतज्ञ हो जाते थे, वे बातें उम्ते बहुत मामूली लगती थीं |
अन्य युवकों को जिन चीजों में रुचि थी उनसे वह विरक्त हो चुका था।
तब एक दिन कार्तिक के मेले में जब महाराज आदित्य वर्मम और सभी
सभामदो के सेमे गंगा केः तट पर लगे थे, चंद्रमा की शीतल किरणों के तले अकैले
टह्लते उसे लगा बह ऊध्वें दिशा में जा सकता है। मानो कोई गुप्त द्वार खुत
गया था। एक आह्वाद उसे यह ज(नकर हुआ। उसे याद आया रम्भा के साथ
उस दित बातें करते हुए उसने यही कहा था । भाज ऊध्वं दिश्वा में उड़ने का दिन
आा गया। प्रपितामह चंद्र बाहु की तरह आज बह भी सूर्य तक उड़ेगा और अक्षय
'कौमायं और यौवन को धरीर में उतार लाएगा ।
उसे लगा जैसे ही उसकी आत्मा ने एकाग्र हो संकल्प किया वह, उड़ने लगा,
'तैजी मे उड़ने लगा | इतनी तेजी से उड़ने से एक रोमांच उसके हृदय में हुआ ।
परसे लगा वह सूर्य मंडल में प्रविष्ट हो चुका है और अक्षय कौमार्य और यौवन
की वर्षा मे नह रहा है। उसके मुख पर एक नया तेज था भर उसके अंगों में
एक नई स्फूति और शक्ति | उसे लग रहा था जंसे वह इस दुनिया का नही था
जैसे ऊपर बादलों मे पालकी मे विचरता हुआ कोई देवता था। वह जो अपने
नीचे मृत्यु और जीवन के चक्र में फंसी मनुष्यों की दुनिया को देख रहा था। इस
दुनिया को वह जैसे वहुत पीछे छोड चुका था ।
इस स्थिति में भी उसे बहुत दिनों तक दिल की आवाजों ने न रहने दिया।
उसे लगने लगा यह अमानवीय स्थिति है। वह पृथ्वी उसने पीछे छोड़ दी जो प्रभ
ने रहने को दी थी। वह फिर से पृथ्वी पर लौटने की व्यग्र रहने लगा ।
टर रू मर
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