मधु ज्वाल | Madhu Jwal

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Madhu Jwal by माणकचंद रामपुरिया - Manakchand Ramapuriya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मधु-ब्वाल खट्टि के आरम्भ से ही के साथ कहणा का लगा हैं, हु आम आज अन्तर - चेतना पर ही ता कि राग जड़ना का जया है; , , + 4 ५०.५, ,२ हु 1 7 माता दिय-दिय्‌ हस्हार हल. /&2+% 11/लीफ का भालोक - सम्बल, /, 4 75० मूक्ष मानवता बुलाती- | नि >९- जाय शारवत भूमि के बल ४६ “: ,न्ली.जयांत्रों एक ऐसी, टिक न पाये रात का तम ! ः भूमि पर मुखरित रहे नित सृष्टि का मधुज्योति-सरयम




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