रामचरितमानस | Ramacharitamanas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
78 MB
कुल पष्ठ :
1292
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about गोस्वामी तुलसीदास - Gosvami Tulaseedas
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ख )
इनके झतिरिक्त बन्दन पाठक जी तथा महाराज इंश्वरीप्रसाद नाराजशसिंड जो फी
छपनाई हुई प्रतियों से भी सहायता ली गई थी । इससे बह बिदित होगा कि जिन :तिबों का
संग्रद किया गया था वे झत्बन्त प्रामाश्षिक शो श्रौर इनसे पुरानी लिखो हुई प्रतियों का तब
छक पता नहीं लगा था। इनमें से पहली और दूसरी प्रतियों के प्राप्त करने का सौभाग्य सभा
के सभासद् स्वर वासी षानू ठाहुरप्रसाद को प्राप्त है । तीसरी प्रति महाराज काशिराज की छपा
से प्राप्त हुई थो । पाँचवों प्रति महामहापाध्याय पण्डित सुधाकर जी फे प्स्तकालय से ली गई
थी । इन प्रतियों की प्रानोनता और प्रामाश्वििकता 'पर विचार करते समय इतना ध्यान कर लेना
ध्म.त्श्यक होगा कि तुलसीदास जी ने संवत् १६३२१ में इस प्रंथ का लिखना 51रम्भ किया था
होर संवत् १६८० में वे परलोकवासी हुए थे ।
सहाराज फाशिराज फे पास एक अत्यंत सुन्दर सबित्र रामायण है जिसके चित्रों
फे बनवाने सें, कहा जाता दे कि, एक लाख साठ हज़ार रुपया लगा था। सभा के सभासद
रेचरेंड ई० ग्रीवज्ञ के उद्योग श्रेर काशो के कमिश्नर मिस्टर पोटर, की सहायता से महाराज
काशिराज ने इन चित्रों के फोटो लेने फी भ्ाज्ञा दी थो। महाराजा साहब के प्रंथवाल्ले चित्र
धत्तुपम हैं। उनमें सेने-चाँदो के काम को उज्ज्वलता के कार्ण सब फोटो स्वच्छ नहों उतर
सके, तो भो पाठकों के मनेरंजनाथे संभों को छोड़ देना उचित नहों समका गया था| सब
चित्न पाँच सौ से ऊपर श्रे जिनमें से ८८ घचुने हुए चित्रों का फोटो लिया गया था । इनमें से भी
कई फोटो, साफ न आने के कारश, छोड़ दिये गये। शेष, जो श्रच्छे समझे गये, इस भंथ के
पहले संख्करण में दिये गये थे |
.. इस श्रथ का दूसरा संत्करण सन् १८१५ में प्रकाशित किया गया पर उसमें चित्र
नहीं दिये गये। .. हे
घहुत से लोगों की यह इन्छा देखकर कि इस संल्करश् की टीका भी प्रकाशित की
जाय, यह भ्रंथ अथेसहित सब १८१८ में प्रकाशित किया गया। इस टीका-सहिंत संध्करय
की कई शअआाचृत्तियाँ छपी । अब यह नया संस्करथ, पाठ भी यथासाध्य सुधार कर तथा टोका
को पू&तया दुह्रा कर तथा उसकी श्रशुद्धियों को दूर करके, प्रकाशित किया जाता है, इस
कार्य में मुझके कहाँ तक सफलता प्राप्त हुई है, इसका निश्चय करना 'रामचरितसानस? फे ममेक्षों
का काम है | इस प्रंथरत्र के जितने संस्करण प्रकाशित हुए हैं उन सबके विषय में यदह्ट कहा
जाता है कि प्रत्येक का पाठ अत्यन्त प्रामाणिक हैँ। किन्तु में ऐसा कहने का साहस नहीं
कर सकता | विद्वन्मंडली इसका निश्चय करेरों और उसी की व्यबस्था सान््य होगो।
इस संस्करण के पाठ की जुटियों को दूर करने में बायू भगवानदास हालना से
मुझे विशेष सहायता प्राप्त हुई है जिसके लिए मैं उनका आभारी हूँ। टोका फे संशोधन में
पण्डित रामचन्द्र शुहु तथा पण्डित लल्खाग्रसाद पांडेय ने मेरी अमूल्य सद्दायता की है, जिसके
User Reviews
No Reviews | Add Yours...