एक युग एक प्रतीक | Ek Yug Ek Pratik

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Ek Yug Ek Pratik by देवेन्द्र सत्यार्थी - Devendra Satyarthi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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एक युग : एक प्रतीक ११ चल रे, श्रर्थात्‌ यदि तेरी पुकार सुन कर कोई नहीं आता तो अकेज्ञा ही चल द॑ रे तारे पागल बले, ता रे तुइ वलिस ने कठ्ठु, अर्थात्‌ जो तुके पागल कहे उसे तू कुछ भी मत कहू........आमि फिरवो ना रे फिरबो नाआर फिर वा ना इ, अर्थात मैं लौटे गा नहीं रे, शव नहीं लीदू गा, नदीं लौट गा रे। ऐसे अनेक चित्र प्रेरक और श्रुति मधुर गान रचने बाले मद्दाकवि को शत-शत प्रणाम ! गुरुदेव ने गान रे, कविताएं लिखीं, अनेक कहानियों, उपस्यासों श्रार नाटफो का सूजन क्रिया। जीवन रपर्शी निबन्ध लिखे, चित्र कला के क्षेत्र में अलग उनकी प्रतिभा अग्रसर हुई। इस प्रकार अपनी वहुमुखी सूजन शक्ति द्वारा वे जीवन पयम्त साद्त्य और कला की .सेवा करते रहे। डनकी रचनाओं में विराट मन आर प्रशस्त भाल उभरता दै1 एक साथ वाल्मीकि आर कालीदास की याद आा जाती है । अपने पद्चिह्वी से उन्होंने एक समूच युग को नाप डाला । उन्हें, देख कर मुझे कई वार अनुभव हुआ कि एक साथ हिमालय अर गंगा का चित्र सजीब हो उठा हूँ, एक मुक्त वाक थुग-पुरुष अंगुली उठा-उठा कर हमें यह चित्र दिखाये जाता हैं, जसे पद्मा का पानी सजग दो उठा हो, जैसे थुग-युग की भाषा बाल उठी द्वा, जेंस अतोत ओर आगत एक सूत्र में पिय दिये गये हों ! गुरुदय के जीवन काल में ही बंगला साहित्य में दूमरे युग की गति-थिधि आरम्भ हो गई थी | काजी नजरूल ने काव्य क्षेत्र में ओर शरतचन्द्र ने उपन्यास जगत में गुरुदेव से मिन्‍न प्रकार की सजन-शक्ति का परिचय दिया। गुरुदेव की महानता यहाँ भी पीछे नहीं रही। उन्होंने स्वय॑ अपनी रचना में अपने ऊपर व्यग्य कसने से संकोच नहीं किया । वे नये युग को आते देख रहे थे।




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