प्रश्नोपनिषत् प्रारभ्यते | Prashnopanishad Prarabhyate
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
204
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)के प्रश्नोपमिषदि
रा न्न्अन»न»नअनअननअनपफननीिनकननातत तन
हें तत्पर और त्रह्मनिष्ठ ( परं, ब्रह्म, अन्वेषमाणाः ) पर '
ब्रह्म का अन्वेषण करते हुवे ( ह, वे ) निम्नय ( एघः )
यह ( तव्, संघ, वक्ष्यदि, इंति ) जो इसारा अभ्ीषट
है, उस मब को कहेगा,इस आशा से ( ते, है, समित्पा-
णयः ) वे ममिद्ठु समिच् हाथ में लिये हुवे ( ऋगवन्तं,
पिप्परू दस ) भगवान् पिण्पलाद ऋषि के ( उपसब्नाः )
समभोप नये ॥ ६१५॥ , 1
जावाधेः-सुकैशा, मत्यकास, गाग्यं, कीशल्य, बेंद्फि
ओर कबन्धी ये ६ ऋषिपुत्र जो अपरा विद्या में निष्णात
होजे ने ऋत्मपर और ब्रह्मनिष्ठ थे अधांत् वेद बेदाड़ों,
को पढ़ने मे उत्सट ब्रह्म की जिज्ञासा इन को उत्पन्त
हुई थी ( इस से इन का ब्रह्लज्ञान के प्रत्ति अनुराग दि;
खलाया नया है ) परब्रह्म का अन्वेषण ( खोज ) करते
हुवे जिन्नासु नाव से समित्पाणि होकर (यह भाव इन
की. जिज्ञास्त को सूचित करता है ) भगवान् पिप्पलाद
ऋषि के (इम आशा से कि यह हमारी प्यास बुरावेगा)
सास पहुंचे १५९॥ ' है “० य ह
तान् ह 'स ऋषिरुवाच-भूय एवं तपसा
ब्रह्मचस्येण शखाठ्ुया संव्त्सरं संवत्स्यथ,
यथाकरामं प्रश्नाव् एच्छय, यदि विज्ञा- .
हयामः सर्वे हु वो वद्याम इलि ॥२॥ ,
पदाथे;-( तानू ) उनको ( संः, 'ऋषिः ) बह ऋषिः
(है!) रुपष्ट (“उधांच ) ओला के /(मूप:, .एव):फिर हो
ता
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