प्रश्नोपनिषत् प्रारभ्यते | Prashnopanishad Prarabhyate

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Prashnopanishad Prarabhyate  by बद्रीदत्त शर्मा - Badridatt Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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के प्रश्नोपमिषदि रा न्‍न्‍अन»न»नअनअननअनपफननीिनकननातत तन हें तत्पर और त्रह्मनिष्ठ ( परं, ब्रह्म, अन्वेषमाणाः ) पर ' ब्रह्म का अन्वेषण करते हुवे ( ह, वे ) निम्नय ( एघः ) यह ( तव्‌, संघ, वक्ष्यदि, इंति ) जो इसारा अभ्ीषट है, उस मब को कहेगा,इस आशा से ( ते, है, समित्पा- णयः ) वे ममिद्ठु समिच्‌ हाथ में लिये हुवे ( ऋगवन्तं, पिप्परू दस ) भगवान्‌ पिण्पलाद ऋषि के ( उपसब्नाः ) समभोप नये ॥ ६१५॥ , 1 जावाधेः-सुकैशा, मत्यकास, गाग्यं, कीशल्य, बेंद्फि ओर कबन्धी ये ६ ऋषिपुत्र जो अपरा विद्या में निष्णात होजे ने ऋत्मपर और ब्रह्मनिष्ठ थे अधांत्‌ वेद बेदाड़ों, को पढ़ने मे उत्सट ब्रह्म की जिज्ञासा इन को उत्पन्त हुई थी ( इस से इन का ब्रह्लज्ञान के प्रत्ति अनुराग दि; खलाया नया है ) परब्रह्म का अन्वेषण ( खोज ) करते हुवे जिन्नासु नाव से समित्पाणि होकर (यह भाव इन की. जिज्ञास्त को सूचित करता है ) भगवान्‌ पिप्पलाद ऋषि के (इम आशा से कि यह हमारी प्यास बुरावेगा) सास पहुंचे १५९॥ ' है “० य ह तान्‌ ह 'स ऋषिरुवाच-भूय एवं तपसा ब्रह्मचस्येण शखाठ्ुया संव्त्सरं संवत्स्यथ, यथाकरामं प्रश्नाव्‌ एच्छय, यदि विज्ञा- . हयामः सर्वे हु वो वद्याम इलि ॥२॥ , पदाथे;-( तानू ) उनको ( संः, 'ऋषिः ) बह ऋषिः (है!) रुपष्ट (“उधांच ) ओला के /(मूप:, .एव):फिर हो ता




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