मानव धर्म प्रचारक | Manav Dharm Pracharak

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Manav Dharm Pracharak  by जगतकुमार शास्त्री - Jagata Kumar Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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फ राम सम्मुख रा और कहा कि आप इन पर अपने चरण रस हे राम ने वैसा हो किया। तथ भरत उन सढ़ाऊँ यो सादर प्रदण कर, ऋने लगा--हे वीर, अयोध्य के राज सिंद्दासन पर यपढ़ाउँ का यह जोड़ा रखा जायेगा। झटा तथा बहकल-बम्प घारण करके और फन्न मूल साते हुए चपौदद बप तक में अयोध्या के ब्रादिर निवास करूँगा और यहीं से राज्ञ कार्या का सम्पादन करता रहूँगा। यदि चौदह बप समाप्त दोते ही आप अयोभ्या न पहुँचे तो मैं अरित में प्रवेश करके भस्म हो जाऊँगा। भरत के वचन सुन, राम ने भरत और शबुल्त को छाती से लगा लिया और फिर सब को यथायोग्य मिलकर आँसू भरे नेत्नो से बिद्व किया । कुछ काल पश्चात्‌ राम सीता और लद्टमण भी चित्रकूट से चले और अमेक बनो का भ्रमण तथा सन्त, मद्दात्माओं का सत्सग करते हुए अन्त में पचयटी में जाकर रहने लगे । एक दिन शूर्पणखा नाम राज्ष्सी बदाँ आई और राम को देसरर मोदित हो गई और राम के साथ विवाद की इन्छा प्रझट करमे लगी। राम ने इसे श्स्वीकार कर दिया | उसने लक्ष्मण से ग्राथना की तो उसने भी इन्कार फर दिया । तब बढ क्र द्ध होकर सीता को मारने चलो। आत्म रक्षा के भाव से भेरित होकर राम ने लक्ष्मण को इशारा किया कि इस दुप्टा को दस्ड मिज्ञना चाहिये।




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