ऋग्वेद - संहिता भाषा - भाष्य भाग - 3 | Rigved Samhita Bhasha Bhashya Bhag - 3
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
30 MB
कुल पष्ठ :
905
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ २३ |]
दुष्ट राजा की निन््द॒र, उत्तम राजा की प्रशंसा । ( ६ ) सू्यवत् अश्ववत्
और वरवत् वीर सेनापति का वर्णन 1 ( < ) विज्वुडी वत् सेनापति 1(५)
रथवत् महारथी का वर्गन । दुधिक्रा' सेनापति राजा का वर्णन । भयहेतु।
( घू० ७७०-'-०७६ )
स्० [ ३९ |--दथधिका' परमेश्वर । राष्ट्र का संचालक, धारक राजा
दर्धिक्रा' उसका अभिवेक । ( ३ ) दथिक्रा गुरू । (६) उनकी डटयासना ।
६ घरू० ४७३६-७७५९ )
सू० [ ४० ]--इथिक्रा राजा, परमेश्वर | परस्पर स्नेह्दी राज्ञा प्रजा के
ऋर्चब्य | पश्चान्तर में परमेश्वर के ग्रुण स्तवन । ( ३६) ब्रेगवान् चाणवत्त्
और वाज्ञ पश्षो के तुल्य सेनापति | (४) वेग से बढ़ते अश्ववत् अम्युदय-
और घुरुष का वर्णन । आत्मा का चर्णन । ( पू० <७९-५८३ )
सू० [४१ |-इन्द्र चरुण गुरु जन। विनीत शिप्य के कत्तव्य
इन्द्र वरुण, स्त्री पुरुष, दिन रात्रि, भाणापान | ( ४ ) राज्य के प्रधान दो
मुरुषों के कत्तेन्य 1 ( ५ ) गाड़ी के तुल्य वाणी और उसके अभ्यागत गुरु
शिष्य, इन्द्र वरुण । ( ६ ) मेच्र विद्युतवत् राजा अमात्य इन्द्र वरुण ।
६ ७ ) माता पिठावत् उनके कर्तव्य 1 ( ९ ) अथपति ज्ञानपति, इन्द्र
चरुण | ( पृ० ७८३-४९१ )
स्० [४३ ]+राज़ा के कर्तव्य | आत्मा का वर्णन। (२ ) राजा
चरुण, परमेश्वर का वर्णन, डसका चैसव । ( ७) डसकी डयासना । (८)
अखसद॒स्यु का रहस्य । अव्यात्म व्याख्या | ( पु० '५९३१-०५७ )
सू० [४३ |--न्री पुरुषों के उत्तम गुणों का चर्णन। € प्रू०
७२९७--६०१ ) भर
स्० [ ४४ |--जितेन्द्रिय स्त्री पुरुष के कर्तव्य | (प्घ० ६०१-६०४)
सू० [ ४५ ]--गृहस्थ रथ का वर्णन । उसमें विद्वान की जरू अन्ञा-
दि से पूर्ण पात्रवत् स्थिति | किरणों बत् विद्वानों का अम्युदय ।( ३ »
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