ऋग्वेद - संहिता भाषा - भाष्य भाग - 3 | Rigved Samhita Bhasha Bhashya Bhag - 3

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Rigved Samhita Bhasha Bhashya Bhag - 3  by जयदेव शर्मा - Jaydev Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ २३ |] दुष्ट राजा की निन्‍्द॒र, उत्तम राजा की प्रशंसा । ( ६ ) सू्यवत्‌ अश्ववत्‌ और वरवत्‌ वीर सेनापति का वर्णन 1 ( < ) विज्वुडी वत्‌ सेनापति 1(५) रथवत्‌ महारथी का वर्गन । दुधिक्रा' सेनापति राजा का वर्णन । भयहेतु। ( घू० ७७०-'-०७६ ) स्‌० [ ३९ |--दथधिका' परमेश्वर । राष्ट्र का संचालक, धारक राजा दर्धिक्रा' उसका अभिवेक । ( ३ ) दथिक्रा गुरू । (६) उनकी डटयासना । ६ घरू० ४७३६-७७५९ ) सू० [ ४० ]--इथिक्रा राजा, परमेश्वर | परस्पर स्नेह्दी राज्ञा प्रजा के ऋर्चब्य | पश्चान्तर में परमेश्वर के ग्रुण स्तवन । ( ३६) ब्रेगवान्‌ चाणवत्त्‌ और वाज्ञ पश्षो के तुल्य सेनापति | (४) वेग से बढ़ते अश्ववत्‌ अम्युदय- और घुरुष का वर्णन । आत्मा का चर्णन । ( पू० <७९-५८३ ) सू० [४१ |-इन्द्र चरुण गुरु जन। विनीत शिप्य के कत्तव्य इन्द्र वरुण, स्त्री पुरुष, दिन रात्रि, भाणापान | ( ४ ) राज्य के प्रधान दो मुरुषों के कत्तेन्य 1 ( ५ ) गाड़ी के तुल्य वाणी और उसके अभ्यागत गुरु शिष्य, इन्द्र वरुण । ( ६ ) मेच्र विद्युतवत्‌ राजा अमात्य इन्द्र वरुण । ६ ७ ) माता पिठावत्‌ उनके कर्तव्य 1 ( ९ ) अथपति ज्ञानपति, इन्द्र चरुण | ( पृ० ७८३-४९१ ) स्‌० [४३ ]+राज़ा के कर्तव्य | आत्मा का वर्णन। (२ ) राजा चरुण, परमेश्वर का वर्णन, डसका चैसव । ( ७) डसकी डयासना । (८) अखसद॒स्यु का रहस्य । अव्यात्म व्याख्या | ( पु० '५९३१-०५७ ) सू० [४३ |--न्री पुरुषों के उत्तम गुणों का चर्णन। € प्रू० ७२९७--६०१ ) भर स्‌० [ ४४ |--जितेन्द्रिय स्त्री पुरुष के कर्तव्य | (प्घ० ६०१-६०४) सू० [ ४५ ]--गृहस्थ रथ का वर्णन । उसमें विद्वान की जरू अन्ञा- दि से पूर्ण पात्रवत्‌ स्थिति | किरणों बत्‌ विद्वानों का अम्युदय ।( ३ »




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