गीता का सार | Geeta Ka Saar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
550
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्र गीताका सार प् अ० १८
“केचछम पद कमयोंग और सांख्ययोग--दोनोेंमें ही आया
है । प्रकृति और पुरुषके विवेकको लेकर कमयोग और सांझ्ययोग
है । कमयोगमें सब क्रियाएँ शरीर; मन, बुद्धि और इद्धियोके
द्वारा ही होती हैं, पर उनके साथ सम्बन्ध नहीं जुड़ता अर्थात् उनमें
ममता नहीं होती | ममता न होनेसे शरीर, मन आदिकी संसारके
साथ जो एकता है, वह एकता अनुभवम आ जाती है । एकताका
अनुभव होते ही खम्हपमें स्व॒तःसिद्ध स्थितिका अनुभव हो जाता हैं |
इस वास्ते कमयोगमें 'केवलः पद शरीर, मन; बुद्धि और इन्द्रियोंके
साथ दिया गया है---'कायेन मनसा चुद्धवा केवलरिन्द्रियेरपि'
(गीता ७ । ११)।
सांख्ययोगमे विवेक-विचारकी प्रधानता है | जितने भी कम
होते हैं, वे सब पाँच हेतुओंसे ही होते हैं, अपने खन्यपसे नहीं ।
परंतु अहंकारस मोहित अन्तः:करणबालछा अपनेको कर्ता मान लेता
है | विवेकस मोह मिट जाता है । मोह मिटनेसे बह अपनेकों
कर्ता कैसे मान सकता है ? अथांत उसे अपने शुद्ध खरूपका
अनुभव हो जाता है । इस वास्ते सांख्ययोगमें 'केचछ” पद खखूपते
साथ दिया गया है---'केवलम आत्मानस' ।
अब इसमें एक बात विद्याप ध्यान दनेकी है. कि कमय॑
पनकेवल' दब्द शरीर, मन आदिके साथ रहनेसे शरीर, मन,
आदिके साथ “अहं' भी संसारकी सेवा लग जायगा और :
ज्यों-कान्यों रह जायगा, और सांख्ययोगम खख्पके साथ '
रनेसे में निर्लप हूं; में श॒द्ध-बुद्ध-मुक्त हूँ! इस प्रकार सु
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