वृत्तमौक्तिक | Vrittamauktik
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
662
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उ5चालकीय वक्तव्य
न७+---+
राजस्थान पुरातम ग्रन्थमाला के ७४वें ग्रन्थांक के स्वरूप
वृत्त-मौक्तिक नाम का यह एक मुक्तांकित अन्यरत्न गुम्फित होकर ग्रन्थ-
माला के प्रिय पाठकवर्ग के करकमलों में उपस्थित हो रहा है।
जैसा कि इसके नाम से हो सूचित हो रहा है कि यह ग्रम्थ वृत्त अर्थात्
पद्यविपयक शास्त्रीय वर्णन का निरूपण करने वाला एक छन्दःशास्त्र
है। भारतीय वाइमय में इस शास्त्र के अनेक ग्रन्थ उपलब्ध होते है ।
प्राचीनकाल से लेकर भ्राघुनिक काल त्तक, इस विपय का विवेचन
करने बाले सैकडों ही छोटे-बड़े ग्रन्थ भारत की भिन्न-भिन्न भाषाक्रों
में प्रथित हुए हैं । प्राचीनकाल मे प्रायः सब ग्रन्थ सस्क्ृत और प्राकृत
भाषा मे रचे गये हैं। बाद में, जब देदय-मापाम्रों का विकास हुआ तो
उनमें भी तत्तदु भाषाओं के ज्ञाताग्रों ने इस शास्त्र के निलपण के वंसे
अनेक ग्रन्थ बनाये ।
राजस्थान पुरातन ग्रन्यथमाला का प्रधान उद्देश्य वैसे प्राचीन
शास्त्रीय एवं साहित्यिक ग्रन्थों को प्रकाश में लाने का रहा है णो
अ्प्रसिद्ध तथा भज्ञात स्वरूप रहे हैं। इस उद्देश्य की पूत्तिझ॒प में, हमने
इससे पूर्व छन्द.शास्त्र से सम्बन्ध रखने वाले पाँच ग्रन्य इस ग्रन्थमाला
में प्रकाशित किये हैं । प्रस्तुत ग्रन्य का छठा स्थान है ।
इनमें पहला ग्रन्थ महाकवि स्वयंभू रचित है जो 'स्वयंगू छंद! के नाम
से अंकित है । स्वयभू कवि ६-१०वी झताब्दी में हुआ है। वह ग्रपश्नश
भआपा का महाकवि या | उसका बनाया हुआ अ्रपश्रश भाषा का एक
महाकाव्य 'पउमचरिउ' है, जिसको हमने भ्रपनी “पिषो जैन ग्रस्यमाला!
में प्रकाशित किया है। स्वयंगू कवि ने अपने छन्द.आास्त्र मे, संस्कृत
और प्राइृतभाषा के उन बहुप्रचलित झौर सुप्र तिप्ठिव छन््दों का तो
मसधथायोग्य वर्णन किया हो है परन्तु तदूपरान्त विशेष रूप से भ्रपश्न श-
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