प्रवचन सार | Pravachan Sar

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Pravachan Sar  by श्री कुन्दकुन्दाचार्य - Shri Kundakundachary

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( २७ ,) ग[० सं&७ विषय ...वया का उपकरण पिच्छिका है। २१६ अयलांचार चर्या सतत हिसा है ' डी २१७ 21 मरे या न मरे अयला से हिसा निश्चित है यलाचोर से हिसा मात्र से बंध त्त ह.. « २१७।१-२ ईया समिति से चलने वाले मुनि के जीव के मरने पर भी बध नहीं होता २१८ अयलाचारी के निरंतर बंध यलाचारी निर्लेष... -. ५ . . १० संख्या भ्र्श्प््‌ ५१५ ५ ५१६ भ्श्८ जि: ५१६ २१६ परिग्रह अशुभोपयोग के बिना नहीं होता अतः परिग्रह से बन्धःनिद्िचत है कि २२० वहिरंग परिग्रह के सद्भाव में अंतरंग छेद का त्याग नहीं होता की २२०।१-३ शुद्ध भाव पूर्वक वाहरो परिग्रह का त्याग हो अंतरंग परिय्रह का त्याग है हा २२१ वाद्य परिग्रह के सद्भाव में मूर्छा आरम्भ व असंयम होते हो हैं मर पी अवंयम' शुद्यत्मानुभ्रति से विलक्षगण है ५२७ २२२ जिन उपकरणों के ग्रहण करने से छेद नहीं होता उनके निपेध नहीं है . '. ४२७ विशिष्ट काल क्षेत्र के वश्ष संयम के बहिरंग सांधन भूत उपकरणों को ग्रहण करता है . शरद - ९९३ अनिषिध, असंयतो से अप्रार्थनीय, मृच्छा आदि की अनुत्यादक ऐसी उपधि मुनियों .. द्वारा ग्रहण करने योग्य है ! ह ५२९ २२४ जब शरीर रूप परिग्रह से भी ममत्व का त्याग होता हैं तो अन्य उपधि का विधान कैसे हो सकता हैं ? 1 9 -५३० शुद्धोपयोग परम-उपेक्षा संयम का लक्षण है की पट ५३१ २२४1१-६ स्त्री मुक्ति का निपेध , ५३१-५३७ स्‍त्री के ग्यारह का अध्ययन सम्भव है । * ५ ५३५ . कुल की व्यवस्था के निमित्त आर्यका के उपचार से महाब्रत ३६ २२४।१० ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य ये तीन कुल वाले दीक्षित हो सकते हैं ह ५३७ बे रे २२४११ शरीर अज्भ भंग होने प्र, अडकोप या लिंग भंग होने पर, 'होने पर निम्न थ साधु नहीं हो सकता न ... शेद २२५ यथाजात रूप, ग्रुरु के वचन, सुत्रों का अध्ययव और विनय ये भी उपकरण हैं. ५३६ २२६ मुनि कषाय रहित, विषयाभिलाषा रहित, देब-पर्याय की इच्छा रहित होता हैं. ५४१ वात पीड़ित आदि 1१ पन्द्रह प्रमादों के नाम ५ प्र न ः भोजन की इच्छा से रहित ऐषणा समिति वाला अनाहारी है ्न्‍ ५४३ २२८ शरीर को भी अपना नहीं मांनने वाले, अपनी शक्ति को नहीं छिपाते हुए उस शरीर को तप में लगा देते हैं ' ' प््डपू्‌ >-आहार प्४६ २२६ युक्त का कथन | या] . शैड६ निश्चय अहिंसा व द्रव्य अहिसा “ ह ५४६ २२९।१-२ मांस के दूषरा * भ ४८९




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