भारत में समाजशास्त्र प्रजाति और संस्कृति | Bharat Men Samaj Shastr Prajati Aur Sanskriti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
977
श्रेणी :
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No Information available about गौरीशंकर भट्ट - Gaurishankar Bhatt
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)इिग० भारत में समाजशास्त्र, प्रजाति भौर सस्कृति
जकता को रोकना और वर्णान्रमी -यवस्था और वयवितक, साम्पत्तिक तथा सस्थायी
सुरक्षा को बनाये रखना है। मोल का सम्बाध व्यक्ति से है ॥ अत , मोत राजधम के
फ्ेत्र से बाहर है ।
हिंदू राजनतिक व्यवस्था को धारणा म॑ राज्य तथा सम्राट वे दा पहलू है--
एक, पहटू है धम, जथ तथा काम की व्यवस्था के सरक्षक का, स्व्रधम के परिपोपवः
का और परोपकारी इपालु वा और दूसरा, जा वेवल व्यवस्था वा भाष्यम है जौर
अराजक्ता का अवरोवक है, जिसया कत- ये उते प्रयाजा को लागू करना है जिनका
व्यकित परिवार जाति वण, आश्रम, ग्रामीण सामाजिक संगठन जौर घनापाजन मे
पालन फरता है । व्यवित वा राज्य से वही तर सम्ब'ध है जहाँ तब भथ और काम
वी “प्रवस्थित साधना वा सम्बय है। वयक्तिक जीवन के उच्चतम उदृश्य मोल से
राज्य पा काई सम्बंध नहीं है। साथ ही साथ, व्यक्ति वा राज्य से कई प्रत्यक्ष
सम्बाध नही है बगोकि राज्य का मुर्यप वताप है--पुलधम जातिधम, वणधम तथा
रक्षेप में स्वध्म को “ययल्थित करना। व्यवित ना प्रत्यक्ष सम्ब“ ध परिवार, जाति तथा
ग्राम से है. क्योकि वही उसदे सामाजिक जीवन तथा अस्तित्व भी परिसीमायें है!
ऐसी दशा म राज्य “गवस््था में दो प्रवन्तिया का पस्फुटन हांता है--एक राज्य समाज
भा वेद्ध है भौर जनवत्याण वा मुस्य साध्यम है । उसका अस्तित्व प्रापकाराथ है
प्रत, उसके अधिकार अस्ीमित्त है और दूसर उत्तवं अधिकार वही तक सीमित है
जही परिवार, जाति, वण. झाश्रम व्यवस्था और ग्रामसगठन क॑ अधिवारा वा अत
होता है । इशालिए राजतपथ्र मं दो परम्परायें मिलती है । एवं आर राप्य का सम्ब ्ध
राम्पूण मानव जीयन से है--सभी बुछ उसने वतव्य तथा अधिकार तत्र में आता
है। राजधम मे परापकारिता व विचार न॑ राज्य वां व राभा अधियार तथा क्त ये
दिये है जो जापल्याएं के लिए आवश्यब' है सविन दूसरी ओर सामाजिक प्रवस्था
(परिवार, जाति और ग्राम) के वारण उसके भधिरार सीमित है । अत पराप्पार
और अपरिग्रह राज्यनम के दो मुख्य आधार हो गाते है लेकिन उनका विस्तार बहा
तक है जहाँ से परिवार, जाति, ग्राम, वण तथा आश्रम की सीमायें प्रारम्भ होती है ।
हराया एब परिणाम यह हुप्ना है कि भारत मे नहिताथ व्ययस्था बनाऐे रपने व
लिए राज्य ने, एक सरभत ये रूप में वयक्तिय तथा सामाजिक जीवन वे सभी जगा
को व्यवस्यित विया है और दूसरा हवए व्यापर कार्यों गे बावजूट भी राज्य जमा मा
निरफुण जधियायवताश बारूपन लेसवा। हक यद प्रश्न उठाया जाता हैवि
जहाँ राप्य सरभव है और इसकारण उस असीमित भषियार मिर जाते है वया को
व्यवित स्वता य रह सकता है ? अल्तेजर में मत में, बचीन भारत से राय समाज
पा कैद्र और जाववल्याण वा मुख्य माध्यम रामचा जाता था जिसव बारण राज्य
मय दधोत्र बापी थिस्तत चा। लक्िनि, इससे ब्वद्वित स्वात य पर प्रभाव नही फ्य
नप्याकि राज्य के बहुमुली गाय मुख्यत राज्य की नौव रगाहा द्वारा ही नहीं
पक.
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