बन्धन टूटे न | Bandhan Toote Na
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
154
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बन्धन टूटे न | 27
पिताजी उसे ध्यार करते है और आशीर्वाद
देते है। वह वापिस अपनी सहेलियो के पास
जाने के लिए मुड़ती हैं तो पिताजी उसे
रोक कर उसका परिचय शान्ति से कराते
हैं। वह नमस्ते करती है । शान्ति भी उत्तर
में हाथ जोड़ता है तथा उसे उसकी सफलता
पर बधाई देता है । फिर वह चली जाती है
ओर दृश्य बदल जाता है।]
[सित-आठ दिनो के बाद अचानक क्ृष्णदेव
और शान्ति की मुलाकात होती है।
शान्ति कन्धे से थैला लटकाएं हुए चला
भा रहा है, दूसरी तरफ से क्ृष्णदेव आते हैं।
जहाँ वे मिलते हैं, छीटा-सा बाजार है, तीन-
चार चाय को दुकानें है, एक नाई की दुकान
है तथा एक छोटी-सी दर्जी की दुकान है।]
शात्ति : (अचानक सामने कृष्णदेव का देखकर) नमस्कार
अकृष्णदेव :
शान्ति:
कृष्णदेव :
शान्ति :
कृष्णदेव :
घान्ति :
नम्बरदार जो !
नमस्ते मास्टर जी । कहिए कहां से आ रहे हो ?
जी, घर गया था वहीं से लौट रहा हूँ।
हूँ! घर वालों के लाड़ले लगते हो। क्या रोज
चाँदपुर से आते हो ?
जी नहीं ! दूर पड़ता है इसलिए रविवार को छुट्टी
में ही जा पाता हूँ ।
तो अब स्कूल जा रहे हो ?
जी हाँ।
ऋृष्णदेव : चलो, मैं भी उधर ही दुकान को तरफ जा रहा
हूँ | (कुछ कदम चलने के घाद) तो यहाँ कहाँ रह
. रहेहो?
झान्ति : जी, यहाँ मन्दिर है न, उसके पुजारों के पास
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