श्री गुरूजी समग्र खंड ८ | Shri Guriji Samrg [ Khand - 8]

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Book Image : श्री गुरूजी समग्र खंड ८  - Shri Guriji Samrg [ Khand - 8]

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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३५ श्रक्काएण विवाद टाल दे, पूर्ण ध्यान कार्यपर थी भैयासाहब दाणी, इदीर (मध्यभारत) १६ अगस्त, १६४२ सघकार्य ही एकमेव कार्य है, इस निष्ठा से सभी को सप्रति अनेक प्रकार से सयमपूर्वक अपना काम करना चाहिए, क्योंकि अनेक स्थानों पर ऐसा वाथुमडल दिखाई देता टै कि प्रक्षोभ पेदा होी। इस क्षुव्थता का कुछ लोगों पर परिणाम सभव है। ऐसे समय अकारण विवाद टालकर अपने ही कार्य में सपूर्णत ध्यान देने तथा शीघ्रता से कार्य बढाने की ओर ही सबका ध्यान खींचना आवश्यक है। (मूल मगठी) ३६ वरर्यक्रम ही अपने व्लर्य का अपरिहार्य अण नहीं श्री वसतराव ओक, दिल्ली २६ अप्रैल, १६४३ अपना कार्य समाज-सगठन का है। चह सभी प्रकार के पक्षोपपक्षों से पूर्णत अलिप्त है। सगठन के लिए लोकसग्रह आवश्यक है। लोकसग्रह के लिए उपयोगी तथा अपने घटकों में स्नेह आदि सद्गुण तथा दैनिक जीवन में आवश्यक अनुशासन निर्माण करने के लिए हम विभिन्‍न कार्यक्रमों की योजना करते हैं। हम लोगों ने कभी यह नहीं माना था कि कार्यक्रम ही अपने कार्य का प्रमुख या महत्त्वपूर्ण अपरिहार्य अग है, परतु नियोजित कार्यक्रम नियम के नाते अनुशासन तथा सपूर्ण शक्ति से करते हैं। आपको विदित ही है किसी भी विशिष्ट कार्यक्रम से हम लोग बंधे नहीं हैं। परिस्थिति के अनुसार कोई भी बधन स्वीकार न करते हुए, ऐसे कार्यक्रमों में परिवर्तन और नृतन कार्यक्रमों की योजना अपने मूल उद्दिष्ट के अनुसार हम करते हैं। इस दृष्टि से सन्‌ १६०० के अगस्त मास में लागू हुए निर्वधों को ध्यान में रखते हुए पूर्व के अपने कार्यक्रम में रखा हुआ तथा सैनिक नाम से पहचाना जानेवाला अश अपने शिक्षाक्रम से स्थगित कर दिया गया था। पहले भी सर्वसाधारण मनुष्य को उतने ही अनुशासन आदि गुणों की प्राथमिक शिक्षा दी जाती रही, जिससे उसके दैनिक जीवन में योग्य व्यवहार करने की क्षमता निर्माण हो सके। वास्तव में अपनी यह धारणा कभी नहीं रही कि उन कार्यक्रमों का सैतिक दृष्टि से कुछ महत्व डै। उस सामान्य शिक्षा-शाखा की अन्य सुयोग्य शब्दों के अभाव में ही 'सैनिकी” नाम से सवीधित करते थे। परतु अगस्त १६४० से श्री शुरुणी शमझ खड ८ (२१)




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