विदग्धमाधवम् | Vidagdha Madhavam

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Vidagdha Madhavam  by रमाकान्त झा - Ramakant Jha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| देह 2) कंसवध परय्यन्त स्तवमाला में संग्रहीत २३ खण्डों का हो जीव ने अष्टादशछन्दसः के रुप में उल्लेख किया है । 'स्तवमाला' में संग्रहीत 'गीतावली? भी सनातन की न होकर रूप द्वारा हो लिखी गयी है । उत्कलिकावलछरी--इसमें उत्कलिकावल्लरी, गोविन्द विरूदावली, प्रेमेन्दुसागर आदि अनेक स्तोत्र हैं| ये स्तोत्र तथा अशदशछन्दस्‌”- इनका संग्रह बाद में चलकर स्वयं जीव ने 'स्तवमाला? के नाम से किया, जिसमें कुल मिलाकर ६४ खण्ड है । विदग्धमाधव--कृष्णचरित पर आश्रित सात अंकों का यह नाटक है । इसका विवेचन आगे स्वतंत्ररूप से किया जायेगा । ललितमाधव--यह भी कृष्णचरित पर ही अवर्ल्वित दश अंकों का नाटक अन्य है। इसमें नाटककार ने श्रीकृष्ण द्वारा इन्दावन और द्वारका में की गयी लीलाओं के माध्यम से सम्ृद्धिमत्‌ श्ज्ञार का शास्रीय रुप पस्तुत किया है। नाटकीय कथा की संक्षिप्त रूपरेखा इस प्रकार है-- प्रथम अंक में देवर्पि नारद को शिष्या और सान्दीपनि मुनि की माता भगवती पौ्णमासी अपनी शिषप्या गार्गी को चन्द्रावली और राधिका के रहस्यपूर्ण जन्म इतान्त का वणन करती हुई यह बताती है कि इन दोनों के पिता विन्ध्यगिरि हैं और इस रहस्य से चन्द्रावली और राधिका दोनों ही सर्ववा अपरिचित हें। चन्द्रावली का गोवर्धनमल्ल और राधिका का अभिमन्यु से पाणिग्रहण होने की घटना को योगमाया का विवर्त बतलाया गया हैं, किन्तु इनका वास्तविक परिणय तो श्रीकृष्ण से ही हुआ हे । इस अंक का अधान प्रयोजन चन्द्रावडी और राधिका का कृष्ण में पूचराग की बृद्धि करना है। इसीलिए इस अंक का नाम 'सायभुत्सव” है क्योंकि दिनभर गाय चराने के बाद सार्यक्रार श्रीकृण अपने घर छौटते हैं. श्रौर अमुरागवदा चन्द्राचही और राधा से एकान्त में मिलने का ग्रयास करते हे किन्तु उन दोनों की सास--भाण्ड्रा तथा जटिला द्वारा निरन्तर विष्न उपस्थित किए जाने के कारण उनके साथ कृष्ण का समागम नहीं हो पाता हैं। शअतः इस अंक का सायभुत्सव” यह नाम साथक प्रतीत होता है । दूसरे अद्द में रात्रि के शेप में जब गोपियाँ विविध प्रकार की लीलाएँ




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