यजुर्वेद - संहिता भाषा - भाष्य भाग - 2 | Yajurved - Sanhita Bhasha-bhashya Bhag - 2

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Yajurved - Sanhita Bhasha-bhashya Bhag - 2  by जयदेव जी शर्मा - Jaidev Ji Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( २७ ) के अनुयोक्ता ग्रिवेदश पुरुष का होना, उसका आश्ञापक होना। पक्षत्तर में अध्यात्म देह व्यवस्था का वर्णन । ( १४ ) नायक और आत्मा के यम, आदित्य, और अर्चा तीन नाम्त । उसके तीन बन्धन | ( १५ ) उसके तीन स्थानों पर तीन २ बन्धन । ( १६ ) उसका सर्चोत्कृष्ट रूप । ( १७ ) व्यवस्थावद्ध नायक की अश्व से तुलना । उत्तम सारगों से झुख्य व्यक्ति को जाने का भादेश । अध्यात्म में उन्‍नति मार्ग का अनुसरण | ( १८ ) विजिगीपु का उत्तम रूप, ओपधियों के ग्रास का रहस्य । अध्यात्म में आओोपधिमय जीचनप्रद भोजन का उपदेश । (१९ ) नायक के प्रति सबको सख्य भाव से रहने की आज्ञा । ( २० ) मुख्य अध्यक्ष का महान्‌ सामथ्य, ,उसके हिरिण्य््ईंय और अयः्पाद होने का रहस्य । (२१ ) “वीरवाहु चुस्त श्र वीरों को दलू बद्धं दस्ते बना कर युद्ध करने का आदेश । अध्यात्म में योगियों का वर्णन । ( २९२ ) बलवान्‌ शरीर और सन होने और जंगल में सेना दर्लों की स्थापना । ( २३ ) झत्र उच्छेदक नायक का वर्णन । अज' का रहस्य । उत्तम पद पर स्थित पुरुष को माता पिता के आदर का उपदेश | अध्यात्म में मोक्ष प्राप्त घुरुष,को प्रकृति परमेश्वर का दर्शन। ( २५ ) नायक को चिद्वानों को संगठन करने का आदेश । दूत का कर्तव्य । ( २६ ) तनूनपात्‌ नामक विद्वान के कर्तव्य | ज्ञान और उपास्य और ग्राह्म ज्ञानों को उत्तम भाषा में प्रकट करने का उपदेश । ( २७ ) ड्त्तम अशंसनीय नायक, का महान्‌ सामय्य कि उसके आश्रय में अन्य विद्वान्‌ रहें । (२८) दानशील संगठन के केन्द्रस्थ व्यक्ति के कतेव्य । (२९) प्रथम संस्थापक का कत्तेज्य | आसन के समान विस्तृत होकर अन्यों का आश्रय होना । (३० ) द्वारों के दृश्टान्त से गृह देवियों के कर्तव्यों का वर्णन । पक्षान्तर में सेनाओं के कर्तध्य । 'अयन' शब्द का समुचित अर्थ । (३१) दिन रात्रि के समान स्त्री पुरुषों के कतंव्य ॥। ( ३२ ) मुख्य विद्वानों या स्त्री पुरुषों का कर्सव्य । प्वानोपदेश । (३३) भारती आदि तीन संस्थाओं के कर्तव्य । ( ३४: ) आकाश, या सूर्य और. एथिवी के समान राजप्रता




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