सहजसुख साधन | Sahaj Sukh Sadhan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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किया है; तथा अपनी अगाध साधना के परिणामस्वरूप निम्न ३१ छोटे बड़े दिगम्बर जैन ग्रंथो का सार इस ग्रंथ में भर दिया है :- १. समयसार १२. पुरुषार्थंसिठयुपाय २२ सारसमुच्चय २. समयसार नाटक १३ पशद्चनदि प०चविशति ९? २३- तत्त्वार्थंसार ३. प्रवचनसार १४. ज्ञानाणंव २४ तत्त्वसार ४. पंचास्तिकाय १५. स्वयंभस्तोतन्र २५. बनारसी विलास प्र. अध्टपाहुड १६ इष्टोपबेश २६. द्यानत विलास ६- समयसार कलश १७. रत्नकरंड श्रावकाचार २७ ब्रह्म विलास ७. ह्वादश अनुप्रेक्षा १८ मलाचार २८ पात्रकेसरीस्तोत्र ८. भगवतों आराधना १६. तत्तवज्ञानतरंगिणी २६ वेराग्य मणिमाला ९. सर्वाभसिद्ध २० तत्त्वानुशासन ३० सामायिक पाठ १०. ससाधि शतक २१. योगसार ३१. तत्त्व भावना ११. आत्मानुशासन आत्मबोध, आत्मचितन, आत्मसनिरोक्षण, आत्मावलोकन एवम्‌ आत्मानु- शासन ही दुलंभता से प्राप्त मानव जीवन का कत्तंव्य एवम्‌ पुरुषार्थ है। राग देंष, विषय कषाय एवम्‌ अज्ञान रूप आत्मा की अनादिकालीन मिथ्या मान्यता ही परिश्रमण एवम्‌ अर्शाति का मूल कारण है-सिटाने का एकमात्र उपाय शास्त्र स्वाध्याय एवम्‌ तत्वाभ्यास द्वारा आत्मसाधना के मार्ग में लगना है । सहजसुख प्राप्ति का यही साधन है जिसे इस ग्रंथ में बहुत विस्तारपूर्वक प्रति- पादित किया गया है । अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त अध्यात्म प्रवक्ता श्री डॉ० हुकसचन्दजी भारिल्ल जयपुर द्वारा लिखित मासिक प्रस्तावना हेतु द्ृस्ट उनका हृदय से आभार समानता हे । प्रस्तुत ग्रंथ के प्रकाशन में श्री माणकचन्दजी जन लुहाडिया देहली तथा री निहालचन्दजी पाण्डया एम० ए० एल० एल बी अजमेर द्वारा प्रदत्त योगदान उल्लेखनीय है । भ्री विनोत अग्रवाल प्रो० अग्रवाल प्रिन्टर्स, डिपटीगंज सदरबाजार देहली वालों ने सुन्दर प्रकाशन में सराहतीय सहयोग प्रदान किया है। ट्स्ट इत सभी का आभार प्रकट करता है । इस वर्ष पर्यूषण पर्ये के पुनीत अवसर पर आयोजित श्री दश-लक्षण विधान के समय प्रस्तुत ग्रंथ की कीमत कम करने हेतु दिए गए आथिकसहयोग




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