पल प्रतिपल | Pal Pratipal

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Pal Pratipal by देश निर्मोही - Desh Nirmohi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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10 जा. एक जिंदा चेहरा | 23, जे का। 'मार ले साले चाहे जितना, लेकिन इतनी जोर से मत चिल्ला। मेरे के बा सरदार अगर जाम गया तो उसरा भाई-वाप क्या की रत 40704 बाप क्या था मुझे पता नही, लेकिन वह हड्डीखोर नही था समचा 1 ओः फफजफर रो पडा था। उसे लगा कि आज वह रो ले जी भरके 1 जरा भी उसके भीतर खारे पानी का दरिया कुछ घमा सगता, वह नजरो के आये घूमती व्हील- चेयर के नीचे हाथ दे देता और नये पिरे से फूट पडता। तेजा भी रोगा था उस दिन सताखी के साथ, थौर रोते-रोते दोनो साथ साथ सो गये ये । सवेरे काम पर जात-जाते तेजा ने बस इतना कहा था, यार तू पुरबियों की दरह खँनी खाकर यूकता चलता है गंदा लगता है। इसे छोडप को सोच ।' और घीर बीरे सतोबी अपने इस पुरक्रियापन से उबर गया था। बीडी वह अब भी पीता था तेजा से छुप- छूपकर भौर तेजा जब भी पढड लेप ता एक बेबस खीझ भरी आवाज मार देता उसे, 'हाय रब्ब, ये तू क्या कर रहा है सतोखो ?” और सतोखो वे दांतो के बीच दी बीडों छूटकर गिर पडती हर बार । तेजा के साथ रहते-रह॒ते सरदार जागा, में जाग एक ईमान जरूर जाग आया था सतोखी के भीतर । सही और गलत की चीरकर अलग कर देने जैसा ईमान, जिसने उसके अतस में धूमती व्वील चेयर को कुछ भर निर्बाध उता लिया था। दिनोदिन बदलता भ्रया था सतोखी सिवाय इसके कि दांतो के बीच से बार बार छूटकर गिर पड़ने के बावजूद बीडी पीता था वह और न हूँ को मा* करके एवं झनाटेदार तमाचे के वाद के घटाटाए जे उरे भौर छूटती हुईं चमकदार चि-गारियो में यो जाता था थोडी दर के लिए । ऐसे ही बहुत जरा-सी बात थी उस दिव, जब किसो मिल के अदने से मुणती ने अनजाने में तू-तडाक की थी तजा से, नौकरी से निकलवा देन की धमवी के साथ, और सतोखी ने झपटकर उसका कालर पकड़ लिया था वहीं, 'अवे ओ काणे की औलाद नोकरी स निकलवायेगा तेजा को ? रखवा भी सकता है किसी को रोजी पर, है इतनी नौर्तत ? और उमके आग ताई का लहूलुहान चेहस घूम गया भरा। 'मैंन सैकडा के जबड़े तांडकर उनके हाथ मे दे दिय हैं मालूम है? लेक्नि कइयो को जनखा समझकर बिना हाथ लगाये छोड भी देता हूं मैं, जैध तुझे छोड रहा है, थू ” मोर सचमुच सतोखी उसे विट्वूप से परे धवेलकर हाथ झाडता हुआ चल दिया था। सतोखी न यू दर# छोड दिया था लेकिन बह जनखा नही छोड पाया सवोखी को, ओर सतोखी की नौकरी खत्म हो गयी । नौंकरी पहों थी लेक्न त्ेजा तो था सतोखी के साथ। देख लिया हडडी खोर सरदार कीरत सिह को, ऐसा ही सरदार तू बनाना चाहता था सुझे ?२ और ठट्दाके के साथ सतोखी मे तेजा की पीठ पर एक घौन जमा दिया था । तेजा दिन- भर काम पर रहता और सतोद्धी व्होल चेयर के पीछे दौडता रहता सारा दिन




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