अथर्ववेद: ६ | Atharvaved ६
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
368
श्रेणी :
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No Information available about क्षेमकरणदास त्रिवेदी - Kshemakarandas Trivedi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चल कक केशबमपद | बेब | . वेश | खक्त के प्रधमपद् देंचता
४०| अभय चाधा पृथिवी सचिता
४१ मनसे चेनसेथिय | इन्द्र
४२ अब ज्यामिच धन्वनो , सन्यु
४७ अय॑ दर्भो च्रिमन्युकः ! दर्भ
४४| अस्थाद् चोरस्थात् | मनुष्य
8५% परोपेहि मनस्पाप | अशिन, इन्ठ्ठ
४६ ये। न जोवेोलि न , स्वप्न
छ७, अग्नि; पातः सबने. अग्नि इन्यादि
४८ श्येनो सि गायत्न च्छन्दा, आत्मा
४६ नद्दि ते अस्मे तन््व.. | अग्नि
५ 6 शिचनो
पृ० इत॑ तद समझ माखु। अशिर
प१| बायो पृत, पश्चित्नेण | सम इत्यादि
धूर| उत्त् डिब्र एनि झुरये बदे
परे चयैाश्व म इद पृथिवी । विश्वेदेवा इ०
५४| इृदसद् युजउत्तरमिन्द्र इन्द्र _
५५, ये प्न्थानों बदवोी . विश्वेद्रेया
0६ मा नो देवा अरदिर्वंधीत् देवजना
पए७ इद्मिद् चां उसेपजमिद रुठ
यशसत भेन्द्रो मघचान् | विश्वेदेचा
५६ अनडुदुभ्यस्त्व प्रथर्म | झसन्धती
६० अयमा यात्ययेमा अयमा
5९ महामांपो मधुमदे परमेश्वर
६२ वैश्वानरों रश्मिमिरन. | मन्त्रोक्तआदि
ह३।| यत् ते देवी निऋ ति | आत्मा
६७४| स जानीध्च स॑ संज्ञान
६ए अवचमन्युराचययताव इन्द्न
5६६ निहेस्त' शन्रुरभि | इन्द्र
६७ परिवर्त्तानि स्वत | इन्द्र
६ आयमगन्त्सविता विश्चे देचा
58 गिराचरगराटेणु प्रजापति
७०, यथा मांस यथाछुश | प्रजापति
७९१ यवन्नलमद्ि बछुघा । अधि
७२| घयाखितः प्थयते.. | प्रज्ञापनि
७३| एद यातु चरुण- विश्वे देचा
७४| स व. पृच्यन्तां भग
७५| निरमु लुद्र ओकलः | इन्द्र
७६| य एन परन्पीदन्ति | अग्नि
७७ अस्थादुद्योस्स्थातू | गोपा
७८! सेन भूनन हविपा दब्स्प्ती
७६ अयनो नभसस्पतनि३ः | नमसस्पति
४० अन्तरित्षेय पतति | परमात्मा
०
शन्नुओं से रक्ता का
आत्मा को उन्नति
क्रोध की शान्ति
क्राधकी शान्ति
रोग का नाश
मानसिक पापका नाश
स्वप्त के श॒ुण
आत्मा की उन्नति
परमात्मा के गुग्ग
प्रलय और सटच्टि
आत्मा के दोप नाश
द्रोद्द कानाश
आत्मा के दोपका हे
स्वास्थ्य की रच्चा
राज्य की रत्ता
सम्पत्ति पाप्ति
दोष के नाश
दोप क्र नाश
यश पाना
सच झुरप की प्राप्ति
ग्रश्सम्थ आश्रम
परमेण्चर की मांहमा
धन ओर नींगेगता
ज्ञप्राप्ति
अर्म का
सेनापति के लक्षण
सनापत्ति ् सलक्तण
नापति के लक्षण
डन सरकार
यश की धाएिव
'मेश्वर की भक्ति
पो का नाश
ज्य बढाना
गत से समोगम
एकमत्ता के लिये
शत्रु का हटाना
आयु बढाने के लिये
सपदा पाना
शदस्थ धर्म
सर्व सम्पत्ति पाना
परमात्मा की मद्दिमा
न
छ्
| अगनी इत्यादि
अनुप्ठुप इत्यादि
अनुष्डुप
अनुप्क्षप
अनुप्टरप' शुद्ती
पथ्या पक्ति इत्यादि
बकदतात्य[दि
अप्टुप
पुर उ्खिक्
अनप्डुप इत्यादि
जगदठी, पथ्या पंक्ति
गायत्री इत्यादि
अनुप्टुप
ज्िष्ठुप
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अनुप्दुप्
बुद्दता इत्यादि
अनुष्दुप् व दनी
जगती इत्यादि
अनादम
अनेष्ठुप्
निष्व्प छा टू
त्रिष्ठुप्
अल॒ष्ट्रुप् निप्दंप
अल॒प्द्प् जिष्टुप्
पंक्ति अलुप्टुप्
| न्रि'ढुप्. अजजप्टुप्
अज्ञप्दुप्
पश्चपदा इत्यादि
अज्ुण्छुप्
अनुष्ठुप्
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अजगती अनुप्टुप
प्ड््प्
पु । इत्यादि
अनुष्टुप्, पंक्ति
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