पञ्च - प्रतिक्रमण | Panch-pratikarman

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Panch-pratikarman by पण्डित काशीनाथ जी जैन - Pandit Kashinath Ji Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रतिक्रमण-सूत्र । ११ हब 25३९३७१७०४४१४६१४२४१४६५ ६८५३६१४७०४१४-४१४२ व चवव जल जल 3 डतनति3ल आज 333 ५9ल १५3 +ल 3 पी बी ५सी चर ५तीपर2> ५५ र ५ # 3 >3धथ वध जज सध सपना सनी. हा जल ५2 ८2 ३ बन लिये “विसोहीकरणेणं' विशेष शुद्ध करनेके लिये 'विसल्लीकरणेणः 6 शब्यका त्याग करनेके लिये और “पावाणं? पाप कम्माण” कर्मो का 'निग्धायणट्ठाए! नाश करनेके लिये 'काउस्सग्गं! का्योत्सर्ग 'ठामि' करता हूँ । भावाथे--ईैर्यापथिकी क्रिया से पाप-मछ छगने के कारण आत्मा मलिन हुआ, इसकी शुद्धि मेंने 'मिच्छा मि दुकर्डा' द्वारा की है। तथा परिणाम पूर्ण शुद्ध न होने से बह अधिक निर्मेल न हुआ हो तो उसको अधिक निर्मल बनाने के निमित्त उस पर वार वार अच्छे स॑- स्कार डालने चाहिण। इसके लिये प्रायश्चिच करना आवश्यक है। प्रायश्चित्त मी परिणाम की विशुद्धि के सिवाय नहीं हो सकता, इसलिये परिणाम-विशुद्धि आवश्यक है। परिणाम की विशुद्धता के लिये शब्यों का त्याग करना जरूरी है । शह्यों का त्याग और अन्य सब पाप कर्भो का नाश काउस्सग्ग से ही हो सकता है। इसलिये मै' काउसग्ग करता हूँ । ११--अन्नत्थ ऊससिएणा सूत्र । ७अन्नत्थ ऊससिएयणं, नीससिएणं, खासिएयणं, छी- एणं, जंभाइएयं, उदडुएयं, वाय-निसग्गेण॑, भमली ए, ( शल्य तीन हैं--/ १ ) साया ( कपट ), ( २ ) निदान ( फल-कामना ), (३ ) मिथ्यात्व ( कदाग्रह ,; ( समवायांग सू० ३ )। $ अन्यत्रोच्छूवासितेन निःग्वसितेन कासितेन छुतेन जम्भितेन उद्गबारितेन वातनिसगेंण अमर्या पित्तमूचछेया सूक्मेरंगसंचालेः सूक्सेः श्लेष्ससंचालः सूक्षमे्ट- शिसज्चालः एक्सादिमिराकारेरभम्तोअविराधितो भवतु सम कायोत्सगः। यावदहतां भगवतां नमस्कारेश न पारयासमि तावत्कार्य र्थानेन मोनेन ध्यानेनात्मीय व्युट्सूजामि ॥ '




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