पञ्च - प्रतिक्रमण | Panch-pratikarman
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
382
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रतिक्रमण-सूत्र । ११
हब 25३९३७१७०४४१४६१४२४१४६५ ६८५३६१४७०४१४-४१४२ व चवव जल जल 3 डतनति3ल आज 333 ५9ल १५3 +ल 3 पी बी ५सी चर ५तीपर2> ५५ र ५ # 3 >3धथ वध जज सध सपना सनी. हा जल ५2 ८2 ३ बन
लिये “विसोहीकरणेणं' विशेष शुद्ध करनेके लिये 'विसल्लीकरणेणः
6 शब्यका त्याग करनेके लिये और “पावाणं? पाप कम्माण” कर्मो का
'निग्धायणट्ठाए! नाश करनेके लिये 'काउस्सग्गं! का्योत्सर्ग 'ठामि'
करता हूँ ।
भावाथे--ईैर्यापथिकी क्रिया से पाप-मछ छगने के कारण
आत्मा मलिन हुआ, इसकी शुद्धि मेंने 'मिच्छा मि दुकर्डा' द्वारा की है।
तथा परिणाम पूर्ण शुद्ध न होने से बह अधिक निर्मेल न हुआ हो तो
उसको अधिक निर्मल बनाने के निमित्त उस पर वार वार अच्छे स॑-
स्कार डालने चाहिण। इसके लिये प्रायश्चिच करना आवश्यक है।
प्रायश्चित्त मी परिणाम की विशुद्धि के सिवाय नहीं हो सकता, इसलिये
परिणाम-विशुद्धि आवश्यक है। परिणाम की विशुद्धता के लिये शब्यों
का त्याग करना जरूरी है । शह्यों का त्याग और अन्य सब पाप कर्भो
का नाश काउस्सग्ग से ही हो सकता है। इसलिये मै' काउसग्ग
करता हूँ ।
११--अन्नत्थ ऊससिएणा सूत्र ।
७अन्नत्थ ऊससिएयणं, नीससिएणं, खासिएयणं, छी-
एणं, जंभाइएयं, उदडुएयं, वाय-निसग्गेण॑, भमली ए,
( शल्य तीन हैं--/ १ ) साया ( कपट ), ( २ ) निदान ( फल-कामना ),
(३ ) मिथ्यात्व ( कदाग्रह ,; ( समवायांग सू० ३ )।
$ अन्यत्रोच्छूवासितेन निःग्वसितेन कासितेन छुतेन जम्भितेन उद्गबारितेन
वातनिसगेंण अमर्या पित्तमूचछेया सूक्मेरंगसंचालेः सूक्सेः श्लेष्ससंचालः सूक्षमे्ट-
शिसज्चालः एक्सादिमिराकारेरभम्तोअविराधितो भवतु सम कायोत्सगः।
यावदहतां भगवतां नमस्कारेश न पारयासमि तावत्कार्य र्थानेन मोनेन
ध्यानेनात्मीय व्युट्सूजामि ॥ '
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