अपने पराए | Apne Paraye
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
146
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वर्तमान दे नहीं रह्य था । दोनो के दुख कितने मिलते-जुलते थे | किन्तु फिर
भी एक दूसरे से अलग-धलग पड़े हुए थे । मनुष्य के भाग्य मे किसी प्रकार
की अपनी मर्जी काम नहीं करती ! केवल उसके कर्मों का फल ही काम करता
है । हाँ। जज्वाती हो जाने से मनुष्य निर्मल अवश्य हो सकता है, और वह
अपनी राह से भटक भी सकता है भविष्य के कर्मों का बीज बोने के लिए ! यह
सब मुरली करना नहीं चाहता था | क्योंकि वह यह भी कभी नहीं भूला था
कि वह भाधों जैसे महान व्यक्ति का बेटा है और अनवर अबू जैसे महान
फरिश्ते का भी । मगर हाँ वह जानता था इतना अधिकार तो उसे था ही वह
अच्छी बात मे स्वय निर्णय ले सके । यही सब बातो की उलझनों में फसा
मुरत्री अकेले बैठा-बैठा सोचता रहा और अपने दाये हाय की उगली से धरती
की मिट्टी कुरेदता रहा । क्योकि घर पर बैठने की उस की इच्छा नहीं रही
थी वहा जाते ही हर वसूल हर चीज में उसे बानो - ही बानों दिखाई दे रही
थी णो कि वास्तव मे वहा थी ही नही | उस की याद की परछाइयाँ मुरली
को चारों ओर से घेरे रहती | उसका दिमाग भारी सा होते लगता और वह
अपने हृदय पर बोझ अनुभव करने लगता ।
मुरत्री के इस खालीपन को तो घर वाले भी अनुभव करने लगे थे। जब
वह ढग से पेट भर रोटी न खाता तो उस की प्रिय मा सीता कहती -
* क्या बात है बेटा | तुम ने तो पूरी रोटी भी नहीं खाई - ?
“बसमाँ ! '
मुरली का रूखा उत्तर होता तो मा फिर बडे ही लाड व प्यार से और
रोटी देती हुई कहती -- ले ले बेटा | एक रोटी और ले ले -- केवल एक ही
रोटी खाने से क्या होगा - ? हट
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माँ भगवान ने इस 'नेए ही तो बर्नाई 'कि:हह-स्वथ“हरजग्रद नही हो
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मुरली का उठते समय यद्द ही उत्तर होता |
* और भूख नही है माँ । गे
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