अपने पराए | Apne Paraye

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Apne Paraye by रचना प्रकाश - Rachna Prakash

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वर्तमान दे नहीं रह्य था । दोनो के दुख कितने मिलते-जुलते थे | किन्तु फिर भी एक दूसरे से अलग-धलग पड़े हुए थे । मनुष्य के भाग्य मे किसी प्रकार की अपनी मर्जी काम नहीं करती ! केवल उसके कर्मों का फल ही काम करता है । हाँ। जज्वाती हो जाने से मनुष्य निर्मल अवश्य हो सकता है, और वह अपनी राह से भटक भी सकता है भविष्य के कर्मों का बीज बोने के लिए ! यह सब मुरली करना नहीं चाहता था | क्योंकि वह यह भी कभी नहीं भूला था कि वह भाधों जैसे महान व्यक्ति का बेटा है और अनवर अबू जैसे महान फरिश्ते का भी । मगर हाँ वह जानता था इतना अधिकार तो उसे था ही वह अच्छी बात मे स्वय निर्णय ले सके । यही सब बातो की उलझनों में फसा मुरत्री अकेले बैठा-बैठा सोचता रहा और अपने दाये हाय की उगली से धरती की मिट्टी कुरेदता रहा । क्योकि घर पर बैठने की उस की इच्छा नहीं रही थी वहा जाते ही हर वसूल हर चीज में उसे बानो - ही बानों दिखाई दे रही थी णो कि वास्तव मे वहा थी ही नही | उस की याद की परछाइयाँ मुरली को चारों ओर से घेरे रहती | उसका दिमाग भारी सा होते लगता और वह अपने हृदय पर बोझ अनुभव करने लगता । मुरत्री के इस खालीपन को तो घर वाले भी अनुभव करने लगे थे। जब वह ढग से पेट भर रोटी न खाता तो उस की प्रिय मा सीता कहती - * क्या बात है बेटा | तुम ने तो पूरी रोटी भी नहीं खाई - ? “बसमाँ ! ' मुरली का रूखा उत्तर होता तो मा फिर बडे ही लाड व प्यार से और रोटी देती हुई कहती -- ले ले बेटा | एक रोटी और ले ले -- केवल एक ही रोटी खाने से क्या होगा - ? हट ्ट 37 है7.2% ४ माँ भगवान ने इस 'नेए ही तो बर्नाई 'कि:हह-स्वथ“हरजग्रद नही हो सकता । 13 मुरली का उठते समय यद्द ही उत्तर होता | * और भूख नही है माँ । गे




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