गम्य जीवन की कहानियाँ | Gamya Jeewan Ki Kahaniyan

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Gamya Jeewan Ki Kahaniyan by प्रेम चन्द जी महाराज - Prem Chand Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अलमोका इक जिनके मास पर फाक़ा फर रहे हो, उन्होंने मज़े से लडको को सिज्ञाया और आप खाया, घव भाराम से सो रही है । 'मोर विया बात न पूछें मोर मुष्टागिन नॉव !! एक वार भी तो झुँह से न फूट कि चलो भट्टया सा छो। रुखू को इस समय मर्मान्‍्तक पीदा हो रही थी ) भुलिया के इन फेर शब्दों ने घाद पर नसक छिद्क दिया । दु खित नेट से देखकर बोला--तेरी जो मज्ञी थी, बद्दी तो हुआ । भ्रव जा दोल बजा । सुलिया--नहीं, तुम्दारे लिए थाली परोसे बैठी है। रखू--सुम्ेे चिदा मत। तेरे पीछे में भी यदनाम' दो रहा हूँ । जय तू किसी की होकर रहना नहीं चाहती, तो दूसरे को क्‍या गरज्ञ है, जो मेरी खुशामद फरे। जाकर काकी से पूछ, लड़के भाम छुनने यये है, उन्हे पकड़ लाऊँ ? सझलिया श्रेयूडा दिसाकर योली--यह जाता ै ! तुस्हें सौ घार गरज डो जाकर पूछो । इनने में पत्ता सी भीतर से निकल थाई । रखू ने पूछा--लडके बगीचे में चले गये काकी, लू चल रही है । पश्चा--शथ उनका फौन धुछ्धत्तर है । बगीचे स जायें, पेढ पर चढ़ें, पानी में डूबे । मे शरेली क्या-क्या फरूँ । रखू--जाकर पकड़ लाऊँँ £ पया--जव सुम्हें शपने सम से नहीं जाना है, तो फिर में माने को क्या का ? तुम्हें रोकना होता, तो रोक न देते । तुर्दारे सामने से ही तो मगण् होगे * पत्चा की बात पूरी भी न हुईं थी रग्धू ने थारियल कोने सें रख दिया और बाग की तरफ चला । (६) रग्यू लड़को को लेफर बाग ले लौटा, तो देसा सुलिया अभी तक ३ ] रत




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