गम्य जीवन की कहानियाँ | Gamya Jeewan Ki Kahaniyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
208
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अलमोका इक
जिनके मास पर फाक़ा फर रहे हो, उन्होंने मज़े से लडको को सिज्ञाया
और आप खाया, घव भाराम से सो रही है । 'मोर विया बात न पूछें मोर
मुष्टागिन नॉव !! एक वार भी तो झुँह से न फूट कि चलो भट्टया सा छो।
रुखू को इस समय मर्मान््तक पीदा हो रही थी ) भुलिया के इन
फेर शब्दों ने घाद पर नसक छिद्क दिया । दु खित नेट से देखकर
बोला--तेरी जो मज्ञी थी, बद्दी तो हुआ । भ्रव जा दोल बजा ।
सुलिया--नहीं, तुम्दारे लिए थाली परोसे बैठी है।
रखू--सुम्ेे चिदा मत। तेरे पीछे में भी यदनाम' दो रहा हूँ । जय
तू किसी की होकर रहना नहीं चाहती, तो दूसरे को क्या गरज्ञ है, जो
मेरी खुशामद फरे। जाकर काकी से पूछ, लड़के भाम छुनने यये है,
उन्हे पकड़ लाऊँ ?
सझलिया श्रेयूडा दिसाकर योली--यह जाता ै ! तुस्हें सौ घार गरज
डो जाकर पूछो ।
इनने में पत्ता सी भीतर से निकल थाई । रखू ने पूछा--लडके
बगीचे में चले गये काकी, लू चल रही है ।
पश्चा--शथ उनका फौन धुछ्धत्तर है । बगीचे स जायें, पेढ पर चढ़ें,
पानी में डूबे । मे शरेली क्या-क्या फरूँ ।
रखू--जाकर पकड़ लाऊँँ £
पया--जव सुम्हें शपने सम से नहीं जाना है, तो फिर में माने को
क्या का ? तुम्हें रोकना होता, तो रोक न देते । तुर्दारे सामने से ही
तो मगण् होगे *
पत्चा की बात पूरी भी न हुईं थी रग्धू ने थारियल कोने सें रख
दिया और बाग की तरफ चला ।
(६)
रग्यू लड़को को लेफर बाग ले लौटा, तो देसा सुलिया अभी तक
३
]
रत
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