परस पांव मुसकाई घाटी | Paras Paanv Muskaai Ghati

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Paras Paanv Muskaai Ghati by साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा - Sadhvipramukha Kanakprabha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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परस पांव मुसकाई घाटी ११ आचार्य तुलसी का नाम आता है, जिनका बोलता व्यक्तित्व तेरापंथ का व्यक्तित्व है। २५५ वर्षों की इस कालावधि में आठ आचार्यों ने मेवाड़ की धरती को बराबर अध्यात्म का सिंचन दिया | छठे आचाये माणकलालजी का शासनकाल समूचा पांच वर्ष के भीतर रहा । इस छोटी अवधि में वे मेवाड़ की यात्रा नहीं कर सके । , आचार भिक्षु ने तेरापंथ की नींव मेवाड़ में रखी । उनकी नयी दीक्षा और प्रथम चातुर्मास वि० सं० १८१७ में केलवा में हुआ । उन्होंने मेवाड़ में कुल तेरह चातुर्मास किये। उनमें केलवा छह, नाथद्वारा तीन, पुर दो, राजनगर एक तथा आमेठ एक इन चातुर्मासों के अतिरिक्त शेषकाल में आपने अनेक क्षेत्रों का स्पर्श कर सैकड़ों-सैकड़ों लोगों को प्रभावित किया । आचार्य भारमलजी ने मेवाड़ में आठ चातुर्मास किये। केलवा दो, नाथद्वारा तीन, कांकरोली, पुर और आमेट में एक-एक । इस प्रकार आठ चातुर्मासों में चार क्षेत्र आचार्य भिक्षु के चातुर्मासिक क्षेत्र ही थे । कांकरोली नया क्षेत्र बना। आचार्य रायचंदजी के मेवाड़ में दस चातुर्मास हुए। उनमें उदयपुर चार, नाथद्वारा पांच और गोगुंदा एक । तीन क्षेत्रों में दस चातुर्मास, इस बात की सूचना देते हैं कि आचार्य रायचंदजी ने उन क्षेत्रों में सघन काम किया था । इस युग में उदयपुर और गोगुंदा--ये दो चातुर्मासिक क्षेत्र बढ़ गये । जयाचार्य ने नाथद्वारा और उदयपुर दो ही चातुर्मास मेवाड़ में किये। प्रश्न हो सकता है कि जब पूर्वाचार्यों ने यहां इतने चातुर्मास किये तब जयाचार्य ने इस क्षेत्र की उपेक्षा क्यों की ? जयाचार्य जैसे मेधावी आचाये मेवाड़ में अधिक समय लगाते तो यहां अधिक ठोस काम हो सकता था। बात सही है, पर ऐसा प्रतीत होता है कि उनके सामने क्षेत्र विस्तार का भी एक लक्ष्य था। उन्होंने मारवाड़ और थली को अपना कार्य-क्षेत्र मानकर विहार किया। उसका परिणाम भी बहुत सुखद रहा । ' आचार मधराजजी ने मेवाड़ में एक ही चातुर्मास किया । वह चातुर्मास हुआ उदयपुर में । कालूगणी के यहां तीन चातुर्मास हुए | उनमें उदयपुर दो और गंगापुर एक। वतंमान आचार्य तुलसी ने भी अपने गुरु पूज्य कालूगणी की भांति यहां तीन चातुर्मास किये हैं--राजनगर एक, उदयपुर एक और आमेट एक | वि० संवत्‌ १८१७ से लेकर २०४२ तक मेवाड़ के नौ गांवों-शहरों में तेरापंथ के आचार्यों के उनतालीस चातुर्मास हो चुके हैं। वर्तमान में अनेक क्षेत्र ऐसे हैं, जो चातुर्मास के योग्य हैं। आज से पांच-सात दशक पूर्व मेवाड़ के अधिकांश गांवों में रहने के लिए बड़ा और पक्का मकान नहीं था । उसका कारण तत्कालीन आथिक दुर्बलता भी हो सकती है। इन वर्षो में मेवाड़ के युवक अपनी जन्मभूमि और पुस्तैनी व्यवसाय का व्यामोह छोड़कर गुजरात पहुंच गये और वहां अच्छे ढंग से जम गये।




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