राजपथ की खोज | Rajpath Ki Khoj

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Rajpath Ki Khoj by आचार्य तुलसी - Acharya Tulsiसाध्वीप्रमुखा कनकप्रभा - Sadhvipramukha Kanakprabha

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साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा - Sadhvipramukha Kanakprabha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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में सेतु का निर्माण नही हो जाता, इस सच्चाई का अनुभव भी नहीं हो सकता | इस अनुभूति के अभाव में न तो समस्या का समाधान मिल सकता है और न ही महावीर का दर्शन समझ में आ सकता है । महावीर को समझने का अर्थ है सूक्ष्म सत्य की अनुभूति । महावीर को पहचानने का अर्थ है स्थूल से सूक्ष्म की ओर प्रयाण । महावीर को जानने का अर्थ है- वहिर्मुखता से अन्तर्मुखता की ओर गति । महावीर को विश्लेषित करने का अर्थ है अंधकार से प्रकाश की उपलव्धि । महावीर का जन्मदिवस मनाने का अर्थ है-महावीर की भॉति जीवन जीने का संकल्प । इस संकल्प की आशिक या सम्पूर्ण स्वीकृति करने वाले व्यक्ति ही अपने-आप को भगवान महावीर के अनुयायी मान सकते हैं । वे ही उनके दर्शन को समझ सकते है और वे ही उनके जन्म-दिन मनाने की प्रक्रिया को क्रियान्वित कर सकते है ! महावीर के अनुसार मानव जगत्‌ के प्रति ही नहीं सम्पूर्ण प्राणी जगत्‌ के प्रति समत्व की अनुभूति होनी चाहिए । वेप्राणी स्थूल हों या सूक्ष्म, चर हो या अचर, सबल हों या निर्वल- उन सबमे प्राणशक्ति है, चैतन्य है । यदि इनमे से किसी भी प्रकार के प्राणियों का सन्तुलन गड़वड़ाता है तो सारे संसार की स्थित्ति गड़वड़ा जाती है । आज की भाषा मे जिसे इकोलोजी' कहा जाता है, वह भगवान्‌ महारीर के समत्वमूलक दृष्टिकोण का एक प्रतिविम्ब है । समता का यह सिद्धान्त जब व्यवहार में फलित होता है तभी व्यक्ति जीने का सही आनन्द पा सकता है । / इकोलोजी के सन्दर्भ में अहिंसा की व्याख्या की जाए तो कुछ नयी दृष्टिया और नया चिन्तन हमारे सामने आता है । जैसे एक तथ्य है जंगल काटने का जंगल काटना हिंसा है और हिंसा त्याज्य है, इतना कहकर किसी व्यक्ति को हिसा से विरत नहीं किया जा सकता । किन्तु इसी तथ्य को सांगोपांग रूप से निरूपित किया जाए तो सहज भाव से समझ में आ जाता है कि एक जंगल काटने मात्र से समस्त जगत्‌ की व्यवस्था किस प्रकार अस्त-व्यस्त हो जाती है । जिस क्षेत्र का जंगल कटता है, उसके पार्श्व्ती भू-भाग में वर्षा कम होती है । वर्षा की कमी का प्रभाव कृषि पर पड़ता है । फसल पर्याप्त नही होती है तो पेट नही भरता है और संसार में अव्यवस्था उत्पन्न हो जाती है । वनस्पति की उत्पादकता मे कमी होने से जीव-जगत पर जो प्रतिकूल प्रभाव होता है, वह केवल संयम की दृष्टि से ही नही, जागतिक व्यवस्था की दृष्टि से भी चिन्तनीय है । बर्तनों की पंक्ति के नीचे यदि एक वर्तन को खिसकाया जाता है तो वह पूरी पंक्ति अव्यवस्थित हो जाती है । मकान की एक ईट को इधर-उधर कर देने से पूरे मकान को खतरा हो जाता है । इसी प्रकार जगत की सहज व्यवस्था में एक पदार्थ को इधर-उधर कर देने जन्म-दिन : एक समूची सृष्टि का ॐ ५




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