दमयन्ती | Damynti

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Damynti by ताराचन्द्र हारीत - Tarachandra Harit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रबप्त सर्ग मुस्तरा पु्पो-सहित क्से रहे सोख्य इनक्ना झाज कोई क्‍या - बहे ये लली उमप्रश्रोर लिसने जो कत्ती ये इधर वल्सी सुसण्जित हैं भली साज-धारे सुखद उत्सुक होन्रहीं प्राण सब मासिन्य बग्रपना खोन्‍रही ज्यों वियागिन प्रियवमायम सुन भ्रहा हा सुसण्बित ग्यौर मुद-पाती महा ये इधर वज्जुत भ्रशोग उघर-खड़े नाम-के प्रनुर्ष ही हृुपित बड़े बे-सताएँ बेप्य्लि क्र वक्षन्से हैं रास खडे-हए, यर कदान्स प्राप्त रात सुहागन्सी रस-छूटत प्रन्‍्के व्थन सूह़ कब! टूटते हूरहे उ्रभोर नम को ताड हैं यान्थय ये सोल-नम-्की भ्राड हैं इघधर छतपत्री फदलियों से पिरो, सगरहीं मानों घटा विधु-पर फिरी केमु-सा सहरा रहा प्लै केतकी वाजू रक्षबन्सी जड़ी है. पत-को मस्लिता महू मसाथवी चम्पा बहीं ग्रूषिका वासन्तिका बुब्जज यही बांटता यहू, इधर गन्ध कदम्य है, पर, म दृग्गोचर कही कट़ुन्‍निम्व है स्वर्ण-जाति सुवापिकी मच्डक खा माधबी-युत,_ कर्िकार मुदित - बड़े विविध-तद परिपूण सुम्दरूस्यान है, बया न होता जब कि राजोधाम है




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