दर्शन का प्रयोजन | Darsan Ka Prayojan

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Book Image : दर्शन का प्रयोजन  - Darsan  Ka Prayojan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रा प्र०, अ० १ | श्रद्धा की आवश्यकता की ३ पिता ने द्रव किया, अपनी सब संपत्ति अच्छे कामों के लिए सुपात्रों को | कर दे दूँगा। जब सब वस्तुओं को उठा-डठा कर छोग छे जाने छगे, तब छोटे बच्चे के मन मे भी अड्धा पेठी' । पिता से पूछने छगा, 'तात, मुझे किस को दीजिएगा ।' एक बेर पूछा, दो बेर पूछा, तीसरी बेर पूछा | थके पिता ने चिढ़ कर कहा, 'स्ृत्यु को ।! कोमछ चित्त का सुकुमार बच्चा, उस क्रर वाक्य से विह्नल हो गया। बेहोश, निस्संज्ञ, हो कर गिर पड़ा। शरीर बच्चे का था, जीव पुराना था। संसार के चक्र मे, प्रवृत्ति के मार्ग पर, उस के अमने की अवधि भा गईं थी । यम छोक, अंतर्यामी छोक, यम-नियम छोक, स्वप्न लोक, को गया | यमराज अपने गृह पर नहीं थे । तीन दिन बालक उन के फाटक पर बेठा रहा' | यम छोटे, देखा, बड़े दुःखी हुए, करुणा उमड़ी । बच्चे !, उत्तम अधिकारी अतिथि हो कर तीन दिन-रात तू मेरे द्वारा बिवा खाए पीए बेठा रह गया। मेरे ऊपर बड़ा ऋण चढ़ गया । तीन वर माग । जो मागेगा वही दूँगा ।? मेरे थहाँ चछे जाने, से पिता बहुत दुखी हो रहे हैं, उन का मन शांत हो जाय |! “अच्छा, वह तुमको फिर से देखेगा।” 'स्वग की बात बताइए, उस की बड़ी प्रशंसा सुन पड़ती है ; वहां की व्यवस्था कहि २, वह कैसे मिलता है १ ठेठ हिंदों मे, इन को भी साध छगी; गर्भवती ज्तियां के लिए साथ! अर्थात्‌ उन की श्रद्धित इष्ट वस्तु भेजना; जो सर्घा होय तो दान दो; यह रूप श्रद्धा” के देख पड़ते हैं। २ पुराण ग्रंथों से ऐसी सूचना मिलती है कि जैसे सूक्ष्म लोक से इस स्थूछ लोक में आने और जन्म लेने के पहिले एक संध्याड्वस्था, गर्मा- वस्था, होती है, वैसे ही प्रायः मूर्लोक से पुनः झुवर्कक पितृलोक मे वापस जाने के पहिले, बीच मे, एक संध्याड्वस्था, बेहोशी की, नींद की सी; होती है | स्थात्‌ तीन दिन तक यम से न मिलने ओर बात न होने का आशय यहो है। शरीर की दृष्टि से, तीन दिन रात बच्चा बेहोश, निस्संश, बे-सुध-बुघ, पड़ा रहा |




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