कहानी संग्रह भाग 3 | Kahani Sangrah Part - 3
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.48 MB
कुल पष्ठ :
148
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बिसाती 3 हू
“में अपहार देता हूँ; बेचता नहीं। ये विढायती और
करमीरी सामान मैंने चनकर लिये हैं । जिनमें मूल्य ही नहीं;
इृदय भी छगा है । ये दामपर नहीं बिकते 1”
के सरदारने तीक्ण्ण स्वरमं कहा--' तब मुझे न चाहिये,
ले जाओ, अठाओ । ”!
“* अच्छा, अुठा ले जाओँगा । मैं थका हुआ आ रहा
थोड़ा अवसर दीजिये, मैं हाथ-मुह धो ढूँ ।”--कहकर
युवक भरभरापरी औखोंको छिपाते हुआ अुठ गया ।
सरदारने समझा, झरनेकी ओर गया होगा । विछम्ब
हुआ, पर वह न आया । गहरी चोट और निमंम व्यथाको
वहन करते, कढेजा ह्ाथसे पकड़े इुओ, थीरी गुलाबकी
“ झाड़ियोंकी ओर देखने छगी। परन्तु झसकी आँसू-भरी
अँखोंको कुछ न सूझता था । सरदारने प्रेमसे अुसकी पीठपर
हाथ रखकर-पूछा--“ क्या देख रही हो १ ”
“ मेरा अेक पाठतू बुखबुल शीतमें हिन्दोस्तानकी ओर
. चला गया था । वह लौटकर आज सबेरे दिखढाओ पड़ा ।
पर जब वह पास आ गया और मैने झुसे पकड़ना चहा, तो
बह झुघर कोहकाफ की ओर भाग गया !” शीरींके स्वरमें कम्प
था, फिर भी वे झाब्द बहुत सैँभलकर निकडे थे । सरदारने
दँसकर कहदा--“' फूछोंको बुलबुख्की खोज १ आइचय है। ”
बिसाती अपना सामान छोड़ गया, फिर ठौटकर नहीं
आया । श्ीरींने बोझ तो झुतार लिया, पर दाम नहीं दिया ।
“नस्ल
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