परिशिष्ट पर्व एतिहासिक पुस्तक भाग १ | Parishisht Parv Etihasik Pustak Bhaag 1

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Parishisht Parv Etihasik Pustak Bhaag 1 by तिलक विजय - Tilak Vijay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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परिच्छेद.) पसब्नचंद्र राजपि.ओर वल्कलचीरी, 64 यवन अवस्थाके सन्मुख-क्रियां, अब वल्कछचीरीमी अपने पिता सोमचंद्रकी सेंवा-करनेम बड़ा प्रवीण होगया- जेगलर्म जा कर पपिताके लिए पके हुए -पधुर मधुर फछादि- ले आता दे, ओर याँव दवाना विगेरह वेयाबचभी वड़ी अच्छीतरद्द करता दे, वल्कछचीरी जन्मसेदी सर्वोत्तम ब्रह्मचण ब्रतकों धारण करने- वाछा या क्योंकि उस जंगरूमें पेदा होकर वल्कलची रीने-सीका देखना तो दर रहा परंतु नाम मात्रमी नहीं सुनाया अत एवं इतनाभी न समझता था. कि स््री क्‍या वस्तु हे ओर किसे ऋ्ते हैं । केबल तापसों तथा उस जुंगलम रहनेवाके मगादि जानवरोकी वजके ओर किसीभी व्यक्तिकों न जानता था क्योंकि .उसने जन्मसे वेंही देखेथे । अब इधर पि्रसन्न्चद्रका हार चुनो “मिप्तकों कि बचपनमंद्दी सोमचंद्रनें राजगईपर बेठाके तापसब्रत अहण कर छियाथा । वह मसन्नचेद्र अपने शुभ करममके प्रमावसे थोडेही दिनोंमें वड़ा होशियार और राज्यकार्यमें. पर्रीण होगया “यचपनसेदी दयाव्यू तथा जिर्तद्रिय हुआ । प्रसन॒चंद्र एक दिन अपनी “राजसभार्म वेठा हुवा था उप्त वक्त वाहिर्से एक आदमीने आकर “डसके पिता सोमचंद्र तथा लघु आता बल्कठचीरीका इत्तान्त कह - झुनाया । प्सन्नचद्रं सुनकर बढ़ा खुशी छुवा. ओर, अहृए अपने रूघु भ्राता वृल्कलचीरीसे मिलनेक्री उत्कंठा बढने छगी। घृरकल- * चौरीके गुर्णाको सुनकर राजा प्रसनचंद्रके हदेयरूप, समुद्र प्रेमकी सरंगें उठने छर्गी और पितासेमी अधिक उस अदृए छोटे मईको देखनेका -असन्त्- उत्कंठा बढ़ गई परंतु उससे मिलनेका कोइमी - उपाय न-दखकर शभ्रदरमंस्ते एक बड़े ,चतुर-(चेत्रकारकाों चुलवाया आर उसे आजादी कि जो.पिता सोमचंद्रके पाद पद्मॉंसि पवित्र वन है वहां जाकर पिताऊे. चरण .कमछाम इसके समान. मेरे छोटे




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