ओम वाल्मीकीय रामायणम् अयोध्या काण्डम् | Om Valmikiy Ramayana Ayodhyay kandam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
521
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पण्डित रामलभाया - Pandit Ramlabhaya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)98800,
.._ [द्िलीयः स्ेः]
कदाचिद्धरतः भरीमान् वृद्ध मातामई नृपम्् ।
अभिवाद्य महात्मानामदं वचनमत्रवीत् ॥ १ ॥
आचायोननुगच्छेय॑ भवतो5्लुमते प्रभो।
लेख्यसंथानशब्दज्ञात्रीतिशास्राथेपारगान् ।। २॥
[विविधासुं च॑ विद्यासु सुनिष्ठानें ब्राक्षणीनपरि ।]*
हस्त्यश्वरथयानेषु तथेव परिनिष्ठितान ॥ ३ ॥
गन्धवेविद्याकुशलाभझानाशिल्पविदस्तथा |
नरान्विनीतार्य इद्धार्न वे वेत्तमिच्छामि तत्नतः ॥ ४॥
ब्राद्मणान्वेदविदुषो इृद्धानू परमपूजितान ।
व्यादिष्टान पुरुषांस्तत्रे सबेविद्याविशारदार्ँ ॥ ५ ॥
१ खे--भयतां प्रीतये। रा-भवताडुमते । २ पूं, प--०शाख्त्र-
स्यपा० । दी-- ०शास््रानुपा० । रा-०शब्देच ज्योतिः शाख्स्यपा० ।
३ पू--विविधायुध- । ४ चं--निष्णातान० | दी--शिल्पजातिषु चाप-
रान् | पे--शिल्पिजातिषु चापरान् । ५ के-नास्ति । पे-केनजिद
न्येन उत्तरपाश्थ लिखितम् । 'राजविद्यान्वितान्युद्धास्ते (नये)
छामि तत्वतः ।' इत्यप्यप्रे लिखित वर्तते | ६ च॑, गशु, पू, रा-बिनी-
तान हस्तिदिक्षासु हयपृष्ठ तथव च। दो--नास्लि। ७ से, गु, पू,
रा-भगांधवोतु (गयु-भगांधर्यासु) ले विद्यासु शिस्पजातियु जाफ्शन
(रा-पारगान्)। के-गांधर्च० । दी-नास्ति | ८ गु-राजाबिया-
ग्वितान् शुद्धान् । पू-राजविद्यान्थितान् वृद्धान् । दो- ०चूद्धाक्मण द
५ पू“चक्तमि०। १० गु-प्राशान् । ११ लें, शु, पूं, दी, रा-भवयते
छामि शिक्षा मम नित्यदशाः (दी-नित्यतः) । के
User Reviews
No Reviews | Add Yours...