दशवैकालिक और उत्तराध्ययन | Dasvaikalik Aur Uttradhyayan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
284
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
मुनि नथमल जी का जन्म राजस्थान के झुंझुनूं जिले के टमकोर ग्राम में 1920 में हुआ उन्होने 1930 में अपनी 10वर्ष की अल्प आयु में उस समय के तेरापंथ धर्मसंघ के अष्टमाचार्य कालुराम जी के कर कमलो से जैन भागवत दिक्षा ग्रहण की,उन्होने अणुव्रत,प्रेक्षाध्यान,जिवन विज्ञान आदि विषयों पर साहित्य का सर्जन किया।तेरापंथ घर्म संघ के नवमाचार्य आचार्य तुलसी के अंतरग सहयोगी के रुप में रहे एंव 1995 में उन्होने दशमाचार्य के रुप में सेवाएं दी,वे प्राकृत,संस्कृत आदि भाषाओं के पंडित के रुप में व उच्च कोटी के दार्शनिक के रुप में ख्याति अर्जित की।उनका स्वर्गवास 9 मई 2010 को राजस्थान के सरदारशहर कस्बे में हुआ।
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अध्ययन ४ ह््ृ
कछूगा,-यात्रस्जीचत के छिए, तोन करत तौद योग से--मन से, चचन स,
काया स--न कझूँदा ने ब्राऊँपा और कर्ते वाउ का अनुमात्न भो नहीं
बस्गा। रा रन
भंते ! मैं अनीत के मदसादान मे लिदृल ड्ोता हैं, उसको निम्दा करता
हूं गद्दों बरता हैँ भौर आत्मा भा ब्युन्मग ररता हूँ 1
अत ! मे तोमरे भद्ठाद्त मे उपस्थित हुआ हैं। इसम सर्द अल्त्ताशन
थई विरति होती हैं।
१४. अत ” दुसक पहचान चोय महाद्वत में मैथुन की विरदि हांती है 1
अंदे ! मैं सब प्रकार के मथुस का प्रत्याल्यात करदठा हैं । देव सम्हग्धों,
अनुष्य सम्द मी अपवा वियज्च सम्ब घी मैथुन ९! मैं दृदय्य सेवन नही बस््णा,
दूसरों से मथुन सदन नहीं झराऊँगा और भधुन सैदन बरने बालों का अनु
साटत भी नहीं कर्ू्या याव>जीवन के लिए ठोन करण हीत योग सं--मन्
स शचन रू काया स -न करूँगा न कराकंगा और करने वासे का अनुमादन
भी नहीं रूछेंगा 1
भत्ते [ हैं अतोस के मंंथुन-सेबन से निदल होता है उसकी शिला
करना हैं गहयाँ करता हैं और आर्मा का ब्यूस्सग करता हैं ।
भने ! मैं चौथे महाद्व मे ऊर्पास्यंठ हुआ हैं । इसम सब मैथुन बी
विरत्ि होती है ।
१४, भंते ! इसके “बात पाँचदे मद्ादद मे परिप्रह की विरदि हाठी है 1
भंते । मैं सर प्रार के परिग्रह का प्रत्याख्यान भरता हूँ ॥ गाद में,
शगर में पा अर५्प मिं“-बहौं भो छल था बहुत धृष्रण या स्थूल, रचित या
अवित्त--विमी भी परिग्रह का प्रहण मैं हवय नही बष्पंया दूसरा! से परिप्रन का
अहण नहीं कराऊंगा और पोरप्रद का इ्रहए करने वाला के मनुमादन भी नहीं
मरूंगा, यावश्जाबन के शिए, तोत करण तोन योग स--मत से, वचन स,
से--न कस्टेंगा, न करार्देयी और छूरने धागे का अनुसेल्स भी मही कया ।
भत्रे ! मई अतोते के परियरद्न से निदत्त होता हूं उससे निदा करता
है, गहोँ ऋरता हैं छौर अपत्मा गा ब्युस्मग करता हैं
अवे ! मैं पायें महादद में उपस्यित हुआ हूं । दसमें छव परिग्रड की
डबिरेठि होगी है
१६ पते इसके पश्कात छूटे ग्रव मं रात्रि माजन को पिरठि हाती है ।
7. ध्रत ! में सब प्रदार के रावि-्पाजन का प्रत्यास्यात करता हैं । अच्न,
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