शरत - साहित्य भाग - 18 | Sharat - Sahity Bhag - 18

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Sharat - Sahity Bhag - 18   by सुन्दरलाल त्रिपाठी - Sundarlal Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दत्ता एप खड़े होते है गिजगाने देखा कि अहुत थोदी! दूटपर एक स्यक्ति अत्यन्त निमार बोकर मछली पकड़ रहा है। लाइट पाते ही उस आइमौने गंध उठाकर अमस्प्रार कित्रा | ठीक रुऐ। सम्रय दिश्बाके सुंइपर संमेकी दिएजे आदर परी झा नहीं मासस तहीं। केरल चार आँखें होते ही शसआ गोरा मैंद एरझुदम सासों रंगौन हो पा । जा स्मत्ति मछकतो पढ़द़ रह्य था वह पूर्ण बागूष्रा बहा भआागजा था छो उस दिन मामा तरकसे छसके पास सझ्िद्रावत करने थया था। रत्तरमे विजयाके लमस्कार करते दी सने निडट क्राकर ईँसमुख मावसे का शाम थोड़ा भूस झैनके स्लिए शदौष्य डिमारा जरुर बुरी छगह नहीं दे केकिन इस ससय मप्रेभाष्ा डर मभौ दम लहीं है। इस सम्द घममें शायद भरापडोे फिसौने साभबान महीं किना | ”! विजवाने छिर हिह्मऋर कडा नहीं ” और दुसरे दो करण अपनेओ सैमाल कर मुस्करोत हुए कहा केकिग मप़्फैजा हो श्रादमीक्र पहचानकर नहीं पदुइ़ता । में हो बढिइर बिना झाते आई हूँ, पर आप तो ज्ञान बूसडर पानौके कितारे बैठे हैं | देश तो कौन-सी मछछौ पदुषी है ! प्यक्तिते हेंसऔर कहा. ब्रेपरी मछली । क्ेडिम शो कपरेमे सिरे दो दो पा सका | मजदूरी का परता शह्दीं बेठा । ढैकैन क्‍या बडे बताइए, भापके ही समा सु प्राय परदेसी दी कदता चाहिए | बाहर बाहर दिस कटे हैं किसौसे छतनी जआाष-फचान मी तहीं है ऐकिन सम तो जैसे भी हो काटती हो पढ़ती है। ”! विजजासे गरेस द्विलाइर ईपत हुए परहा. मेरी भी समभग गद्दी रशा है । आपका मध्यम सायद पूर्ण बाबूक़े मकानके शज़रीक हो है |”? ब्यक्तिन बडा क्‍हीं। ” और फ़िर द्वाथप्ते सरौड़े शस पार दिखाढ़र कहा # करा मकाग बह दिषड़ामें है। इसी बोंधडे पुछपरसे शत हैं। ४ सरौंषका लाम सुशकर बिजनाने पृस तब शो छान पढ़ता है छपदीस आाडूक झड़के नरेश्दर्पे भाप पदुचातत हैं 1 ठस ब्यचिक्रे सिर ड्विलाहे ही गिजया भ्रषदस्त शुतृहहसे पहसा प्रश्न कर बैठी #झेडिस प्रडारदे भाषमौ है 1 7 छेड़िय सुँसे मित्रद्धत है बह अपने इस अप्मिप्ट प्रभ्डे व्यरण प्सस्वस्त खजित हो डठी । विज्याद्नी लम्ादा माद उस श्यचिकी दृष्चिते छिपा गहीं रद प्रद्मा । उफने ईँसफर गदा “छस्झआ महयन हो आपमे क्षड़ी अद्यार्र्म




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