संत संग्रह | Sant Sangrah Volume-ii
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.32 MB
कुल पष्ठ :
82
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)' संत संग्रह भाग दूसरा । ३६
त प्र.शव्द शादिसवों ॥ के ः
नाम रस पीवो:गरु की दातः। शब्द संग भींजो मन कर हाथ ॥ १९॥
चरन गुरु पकड़ो तन मन साथ । मान मद मारो आवे शांत ॥ ९॥
परख कर समभ्हो गुरु की बात। निरख कर चलियो माया घात ॥ ३॥
जक्त सब डूबा भीजल जात । नाम बिन छुदे न जम का नात,॥ ४ ॥
चाट घट उलठो दिन और रात । मोह की बाजी होगी मात ॥ ४ ॥
सुरत से करो शब्द बिख्यात । गगन चढ़ देखो जा साक्षात ॥ ९॥
सिटे फिर मन की सब उत्पात । राधास्वामी परखी और परखात ।/०॥
॥ शब्द तेरेसंवाँ ॥
सुरत क्यों भूल रही । अब चेत चलो स्वामी पास ॥ ९॥
हे मनुवाँ तुम सदा के संगी । त्यागो जगत की आस ॥ २॥
हे इंद्रियन तुम भोग दिंवानी | क्यों फँसो काल की फाँस॥ ३॥
जरुदी से अब मुख को,;मोड़ो । अन्तर अजब बिलास ॥ ४ ॥
जैसे बने तैसे करो कमाई । घर चरनन बिस्वास ॥ ५४ ॥
राधास्त्रामी दीनद्याला । दे हैं अगम ' निवास ॥ ६ ॥
तब सुख साथ रही घर धपने । फिर होय न तन में बास॥ ० ॥
॥ शब्द चौथी सब ॥
सखी री क्यों देर लगाई, चटक चढ़ो नभ द्वार ॥ ९१
स नगरी में तिमिर समाना, भूल भरम हर बार ॥ २॥
'खोज करो उअन्तर उजिंयारी, छोड़ चलो नौ द्वार ॥ ३॥
सहस कँवल 'चढ़ त्रिकुठी घाओ, भवर गुफा सतलोक निहारं ॥४॥
अउख अगम के पार सिंधारो, राधास्त्रामी चरन सम्हर ॥ ४॥
प शब्द पशोसवाँ ॥ ... *.,
क्या सोबे जग में नींद भरी । उठ जागो जल्दी. भोर भद्दे 0.३ ॥
पंथी सब उठ के राह । तू मंजिल अपनी 'बिसर साई ॥ ९त
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