सन्त संग्रह भाग 1 | Sant Sangrah Volume-1

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Sant Sangrah Volume-1 by राधास्वामी ट्रस्ट - Radhaswami Trust

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सन्त संग्रद भाग पहिलां हि श्पू लिपि एॉीीीीटटटटीीी एड शीट पतिब्रता को सुख चना , जाके पति है एक । मन मेली बिमचारिनी , जाके खसस श्मलेक २४ पतित्रता मेली भली , वाली कः्चल छरूप । पद्तिब्रता के रूप पर , वारू कोटि सरूप ४३॥ पत्ब्रता पति को शरज़े , शोर न न. सुहाय । संह बचा जो लंघना , तो भी घास न खाप 0श नेनीं अंतर भाव तू , सेन क्ाँप तोहि ठ । ना में देखू श्र को , ना. तोहि देखन दूं पेश कबीर सीप ससझव्यी , रद पिधास पियास । घ्पौर बेद को सा गहे , स्लाँत बूंद की झास ॥ पांपहा का पन देखे कर, धीरज रहे ल रच । मरते दस जल में पड़ा , तऊ न .बोरी चंच 0७) मे सेवक समरत्थ का , कयह न होथ परकाज । पत्ता नाँगी रहे , तो वाही पति को लाज ॥८्ा मं सेदक समरत्थ वसा , कोई परयला साग। सोती जागी सुन्द्री , सा दिया. सुहाग ॥९॥ पतिब्रंता के एक तू , सुन लिन छौर ले कोय । श्वाठ पहर निरखत रहे ., सोइ सुहारान होय ॥१०॥ इकचितहोयनापियसिल, पत्िब्रत ना श्ावे । चंचल मन चह दिस फिरे, पिथ कहो केसे पावे ॥११॥ सुन्दर तो सोइ' भजे , तजे छान को' ध्पास । ताहि न कबहूं परिहरे , पलक न छोड़े पास ॥९९॥ चढ़ी ध्पयखाड़े सन्द्री , माँड़ा पिउ साँ खेल । दीपक जोधा ज्ञान का , काम जरे ज्योँ तेल ॥९३॥




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