श्री रामचरितमानस की भूमिका | Shri Ramacharitamanas Ki Bhumika

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Shri Ramacharitamanas Ki Bhumika by रामदास गौड़ - Ramdas Gaud

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शिक्षा भीर व्याफरण ११ अच्छे छेषक जिनके व्याकरण सिद्धान्त चिश्वित हैं, छिपि और ' शिक्षाकी सर्वेमान्य प्रणाली खिर नहीं कर सफे हैं--प्रत्युत जब; आज्ष भी एक ही सिद्धान्तनिष्ठ सुल्ेसखक अपने एक ही लेफमें; अपने ही मान्य वियमका बराबर पालन नहीं कर पाता-तो| गोजामीजीके समयमें यदि पूर्ोक्त लिपिके नियम अस्सी प्रति सेकड़ा भी पाले जाते थे, तो थोडी प्रशंसाकी वात नही है। ६ प्रस्तुत संस्फरणां जिनकी मातृभाषा हिन्दी नहीं है, उनके; सुमीतेकी द्ृश्सि हमने ख” भौर “प” का प्रयोगमरात्र सल्कृतकी: तरह किया है। पाठकोंकों यह समर लेना चाहिये, किः “विसैप” फा अप्ुप्रास 'देख” तभी हो सकता है, जब विसेण: 'पढ़ा ज्ञाय। घुलसोदासजीने भन्‍त्यामुप्रास द्वारा “व” कह छम्तान्य उच्चारण निर्दिष्ट कर दिया है। चः एक वचन भकारान्त संज्ा यदि फर्मकारक हो, तो उसके। अन्त अवधीम प्रायः “उ>्का आदेश द्वोता है। हमने 'प्रायःचा इसलिये फद्दा, कि शुद्ध पाठोंमें भी इस नियम अनेक अपवाक्गो हे । “सप्राजु , “राजु , “चल”, “विदार?, “करम्ु”, “धरपु' के इत्यादिका प्रयोग मानसमें विस्तृत रुपसे पाया जाता है। शब्दोफ़िर भर क्रिपा्थोके रुप धवधीमें जैसे पहले प्रयोगमें आते थे, आज मर कल उनसे कुछ ही भिन्न हैं| पाठकोंके सुभीतेके लिये हम चुने 7 हुए शब्दों भौर धातुओोफे कप ईस प्रफरणके धन्तमें देते हैं। हा ७--हन्दोका चुनाव (भ्तु रमचरितमानस विशेषकर दोहा-चौपाइयोंमें लिखा गया हे है। वीच-बीचमें भवसरातुकठ और विषय या काडके अन्तर. अवश्य हरिगीतिका छन्‍्द दिये गये है। स्तुतियोंमें और युद्ध» | प्रकरणमैं और छन्‍्द भी फाममे आये हैं। सस्कृत-काव्पोंमे मे ८ सर्गान्त्म फिसी भिन्न वृत्तसे समात्ति होती है। स्तुति यह थयुद्धादि प्रकरणमें मिक्ष मिन्न इत्त काममें छाये जाते ऐैं। मार




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