षट्खंडागम [खंड 9] | Shatkhandagam [Part 9]

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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5 ७४ हर जे सिरि-भगच॑त-पृष्फदत-भुद्वलि-पणीदो छक्खंडागमो विरहदय-घवला-दीका-समाण्णिदो 2० 2४5 8. करा ई्‌ रि-वीरसेणाइरिय- तस्स चउत्थे खंडे चयणाए पे कृदिअणियोगदार॑ क--2मअल््ू>»+र कहना किनिएकान० पाया नाम +व वन घबम का बनी सिद्धा दद्धईइमला विसुद्धचुद्धी य ठद्डसचत्था । तिहुबणपिरसेहरया पसियंतु मडारया सब्बे ॥ १ ॥ 4७०५७. तिहवगमवणणसरियपच्चक्खबबोहकिरणपरिवेदी । उदमों वि अणत्यवणो अरहंत-दिवायरो जयऊ ॥ रे ॥| 2० .2४4०%#०:७००३०५+ल्‍247/2०३2809#009०7०/०३७०७२७ आठ कर्मरुपी मकों जल देनेवाले, विशुद्ध बुद्धिसे संगुक्त, समस्त पदार्थोको जाननेवाडे, तथा तीन कोकके शिखरपर स्थित ऐसे सब सिद्ध भद्दारक प्रसन्न हेविं॥ १॥ जिसका प्रत्यक्ष शानरूपी किरणोंका मण्डल त्रिभुवनरूप भवनमें केला हुआ है, तथा जो उद्त द्ोता हुआ भी अस्त होनेसे रहित दे, ऐसा अरहन्तरूपी खूब जयवन्त दोवे ॥ २॥ कु, फू, १७




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