आदिपुराण [भाग 2] | Aadipurana [Part 2]

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पड्विश्वतितम पर्व १७ शादूलविक्रीडितवृत्तमू तामाक्रान्तहरिस्मुर्खा कृतरजोघूतिं जरगत्यावनी - मालेव्यां हिजकुब्जरेरविर्त संतापविच्छेदिनीस्‌ । जैनी कीर्तिमिवाततामपसलां. शबइबजनानन्दिनीं निध्यायनों विज्ुधापगां निश्चिपति. प्रीतिं प्रामासदत्‌ ॥१५०॥७ हत्यापें भगवजिनसेना वार्यग्रणीते तिषश्लिक्षएमहापुराणसंगहे भरतराज- दिखिजयोश्रोगतर्णुन॑ नाम बडविशतितमं पर्व ॥२5॥ न्ज्जिल्ज्जिजडज लि जज जल जल जन्‍ न्‍ रन्‍ जज ल्‍ जज ल्‍ल्‍ ल्‍ल्‍ च जज जज ज ल्‍ ल्‍ ज आअलच वि ललिजलिजि जल जज जज ल्‍ज+ ४ जज डी जन्‍ जज न्‍ल- है ऐसा वहाँका वायु रानियोके मार्गके परिश्रमक्नो हरण कर रहा था।। १४९ ॥ वह गंगा ठीक जिनेन्द्रदेवकी कीरतिके समान थी क्योकि जिस प्रकार जिनेन्द्र देवकी कोतिने समस्त दिशाओं- को व्याप्त किया है उसी प्रकार गगा नदीने भी पूर्व दिज्ञाको व्याप्त किया था, जिनेन्द्र भगवान्‌- की कीतिने जिस प्रकार रज अर्थात्‌ पापीका नाश किया है उसी प्रकार गंगा नदीने भी रज अर्थात्‌ धूलिका नाश किया था, जिनेन्द्र भगवानकी कोति जिस प्रकार जगव्‌को पवित्र करती है उसी प्रकार गगा नदी भी जगत्‌को पवित्र करती है, -जिनेन्द्र भगवानूकी कीर्ति जिस प्रकार ह्विज कुंजर अर्थात्‌ श्रेष्ठ ब्राह्मण क्षत्रिय और वेस्योके द्वारा सेवित है उसी प्रकार गंगा नदी भी द्विज कुंजर अर्थात्‌ पक्षियों और हाथियोके हारा सेवित है, जिनेन्द्र भगवानकी कीति जिस प्रकार निरन्तर संसार-भ्रमण-जन्य सनन्‍्तापको दूर करती है उसी प्रकार यगगा नदी भी सूर्यकी किरणोसे उत्पन्न सन्‍्तापको नष्ट करती थी और जिनेन्द्र भगवान्‌की कीति जिस प्रकार विस्तृत, _ निमंल और सदा लोगोको आनन्द देनेवाली है उसी प्रकार वह गगा नदी भी विस्तृत, निर्मल तथा सदा छोगोको आनन्द देती थी । इस प्रकार उस गगा नदीको देखते हुए निधियोके स्वामी भरत महाराज परम प्रीतिको प्राप्त हुए थे ॥ १५०॥॥ इस प्रकार आर्य नामसे प्रसिद्ध भगवज्जिनसेनाचार्यअ्रणीत त्रिपष्टिलकक्षण महापुराणसग्रहके हिन्दी-भापानुवादमें भरतराजकी दिग्विजयके उद्योगकों वर्णन करनेवाला उत्बीसर्वा पर्व पूर्ण हुआ 1 हिल्‍-मन्‍न+ ८ जन-+ ८ -रननम+ सर जनम«+- ३००० कब ०» ७०-२५ १ दिल्मुखामू। २ रजोनाशनम्‌ । ३ पक्षिगज विप्रादिमुर्येदत । डे अवलोकयन्‌ | कह




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