कर्म (महासागर) भाग 3 | Karam(mhasamer) Vol-3
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15.05 MB
कुल पष्ठ :
386
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)राज्य घूतगृह और मदिरालय खोलने की अनुमति न दे । न ये स्थान होंगे न प्रजाजन का विवेक नष्ट होगा न लोभ जागेगा न दुर्घटनाएँ होंगी । युधिष्ठिर के चुप होते ही दुर्योधन दुःशासन कर्ण अश्वत्यामा कणिक तथा पुरोचन उठकर खड़े ही नहीं हो गये वे लोग एक साथ ही अपनी-अपनी बात कह भी रहे थे । घृतराष्ट्र को लगा कि कुछ असाधारण घटित हुआ है और फिर अनेक स्वरों से वह समझ गया कि कई लोग एक साथ बोलना चाहते हैं । उसने धीरे से आदेश दिया विदुर इनसे एक- एक कर बोलने के लिए कहो । विदुर के कुछ कहने से पूर्व ही वे लोग जैसे अपने किसी मौन्त समझौते के अंतर्गत एक- एक कर बैठ गये और अकेला कणिक खड़ा रह गया महाराज युवराज की वात सुनकर यह तो स्पष्ट हो ही गया है कि वे महान् नीतिज्ञ एवं प्रजावत्सल शासक हैं । किंतु महाराज युवराज ने कदाचित् यह नहीं सोचा कि मदिरालय और चूतगृह राज्य की आय के कितने वड़े स्रोत हैं । युवराज चाहते हैं कि मदिरालय और घूतगृह बंद कर दिये जायें ताकि राज्य की आय का एक बड़ा स्रोत्त सूख जाये । मेरा यह आरोप है महाराज कि सत्ता- अधिग्रहण की दौड़ में आगे निकल जाने के लिए युधिष्ठिर लोकप्रिय नीतियों की घोषणाएँ कर रहे हैं जो सम्राट साम्राज्य तक स्वयं कुरुवंश की विरोधी हैं। महाराज विदुर बीच में ही बोला कृपया ध्यान दें कि यह घूत- संगठन अपने स्वार्थ के लिए महाराज के कानों में विष उँडेल रहा है । महाराज और युवराज में स्थायी मतभेद उत्पन्न कर रहा है । यही तो मैं भी कहना चाहता हूँ । दुर्योधन उठकर खड़ा हो गया युवराज यदि इस प्रकार सम्राट् का विरोध करेंगे तो सत्ता के इन दो अधीशों के इस मतभेद के कारण राज्य- कार्य सुचारु रूप से नहीं चल पायेगा विदुर अवाकू- सा दुर्योधन को देखता रह गया किंतु धृतराष्ट्र ने न तो विदुर की टिप्पणी पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त की न दुर्योधन की और कणिक ने इस प्रकार पुनः बोलना आरंभ किया जैसे किसी और ने कुछ कहा ही न हो यदि राजकोश में धन ही नहीं आयेगा तो राजा प्रजा के प्रति अपना वात्सल्य कैसे प्रदर्शित करेगा ? दूसरी वात यह है महाराज कि ये प्रजा के मनोरंजन के स्थल हैं । उनका निषेध प्रजा के मनोरंजन का निषेध है यदि हम प्रज़ा के उचित मनोरंजन का प्रबंध नहीं करेंगे तो प्रजा ऊवकर या तो द्रोह करेगी या राज्य द्वारा अनियंत्रित मनोरंजन के साधन ढूँढ़ लेगी अथवा उसकी ऊर्जा किन्हीं विध्वंसकारी गतिविधियों में लगेगी । या फिर यह भी संभव है कि वे लोग अपने घरों में गुप्त रूप से मदिरा का उत्पादन करें उसका व्यवसाय करें । ऐसे में मदिरा तो बनेगी ही प्रजाजन उसका सेवन भी करेंगे । अंतर यह ही होगा कि राज्य को उसका कर नहीं मिलेगा और मदिरा के उत्पादन पर राज्य का नियंत्रण न होने के कारण मदिरा अधिक बनेगी और निकृष्ट कोटि की बनेगी । प्रजा उसका सेवन कर रोगी होगी । क्या युवराज चाहेंगे कि मदिया के उत्पादन के कारण राज्य को जो कर मिलता है वह न मिले और राज्य द्वारा नियंत्रित कुछ मदिरालयों के स्थान पर घर-घर मदिरालय खुल जायें ? क्या युवराज चाहेंगे कि लोग उत्तम मदिरा पीकर अपना मनोरंजन करने के स्थान पर घरों में निर्मित निकृष्ट मदिरा पीकर रोगी वन अपने प्राण गैंवाएँ ? उसने रुककर धृतराष्ट्र युधिष्ठिर और भीम पर दृष्टि डाली यदि कर्मा/21
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