कल्याण चन्द्रोदय | Kalliyana Chandrodaya

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Kalliyana Chandrodaya by शिवानंद पाण्डेय - Shivanand Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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22 कल्याणचन्द्रोदय उनके समय मे भी हत्याओ का क्रम चलता रहा। अपनी शक्ति को सुदृढ सुरक्षित करने के लिये उन्होने चद वशी रौतेला लोगो का वध किया। तथा उनके समर्थक ब्राहमणों को अधा कर दिया। इन चद वशी राज कुमारो मे एक हिम्मत सिह गुसोंई थे। उन्होने सैनिक शक्ति द्वारा कल्याण चद का विरोध किया। पहाडी प्रदेश मे पराजित होने पर उन्होने काशीपुर मे कल्याण चद से अन्तिम युद्ध किया। युद्ध मे पराजित हुए और भाग कर अली मुहम्मद की शरण में चले गये। पर कल्याण चद ने अपने गुप्तवर भेजकर ऑवले मे ही सपरिवार हिम्मत सिह गुसोई की हत्या करवा दी। इस पर अली मुहम्मद खाँ क्रुद्ध हुआ। उसने १७४४ ई० मे कूर्मांचल पर आक्रमण कर दिया। कुमाऊ की इस आन्तरिक दुर्व्यवस्था का वर्णन काव्य में यत्र तत्र मिलता है। इसी दुर्व्यवस्था का लाभ उठाया विदेशियों ने। चदो के एक हजार वर्ष से भी अधिक शासन काल में अभी तक इतना गम्भीर आक्रमण राज्य पर नहीं हुआ था। छोटे मोटे युद्ध समय समय पर होते रहे। पर यह पहाडी प्रदेश के बाहर माल-भाबर मे हुए। पहली बार रुह्ीला सेनाये पहाडी भाग में भीतर घुस आयी। रुहीला सेना की गतिविधि की पूरी जानकारी काशीपुर के कूर्माचलीय अधिकारी रामदत्त ने तथा रुद्रपुर के अधिकारी शिवदेव जोशी ने समय पर अल्मोडा कल्याण चद के पास भेज दी। इन दोनो योग्य अधिकारियो ने सैन्य सग्रह तथा दुर्गों की मरम्मत के लिये महाराज से आधिक सहायता मागी। पर महाराज के सलाहकारो ने सुझाया कि शिवदेव व्यक्तिगत खर्च के लिये धन की माँग कर रहा है। अत उसे घन नहीं देना चाहिये। वैसे भी रहेले दुर्गम पार्वत्य प्रदेश में घुस नही सकते। ऐसा परामर्श मिलने पर कृपण कल्याण चद ने घन नही दिया। शिवदेव न तो उचित रुप से सैन्य सग्रह कर सके न दुर्गो की मरम्मत। दस हजार रुढ्ेले सैनिक ऑवले से रुद्रपुर की ओर बढे। रुद्रपुर मे शिवदेव ने रुहीला सेना का मुकाबिला किया। पर पर्याप्त साधन के अभाव में कूर्माचलीय सेना पराजित हुई। शिवदेव बची खुची सेना लेकर भीमताल के पास बाढाखोरी ( वटोषर ) के दुर्ग में आ गये। यह कूर्माचल का मुख्य द्वार था। भमोरी दर्रे की रक्षा करना आवश्यकीय था। रुहीला सेना हाफिज रहमत खाँ, पेंदा खाँ तथा बख्शी सर्दार खाँ के नेतृत्व मे कुमाऊनी सेना का पीछा करती हुई भीमताल के पास विजेपुर तक आ गयी। अब कल्याण चद की आँखे खुली। एक छोटी सेना शिवदेव की सहायता के लिये अल्मोडा से भेजी गयी। बिजेपुर मे फिर रुढ्लीला सेना से मुकाबिला हुआ। कूर्माचलीय सेना फिर पराजित हुई। बाडाखोडी का दुर्ग हाफिज रहमत खाँ के हाथ आ गया। वृद्ध बख्शी सर्दार खाँ को दुर्ग का भार सोप कर रुहीला सेनापति हाफिज रहमत खाँ राजधानी अल्मीोडा की ओर रामगढ़ तथा प्यूडा होते हुए बढे। राजधानी पर रुहीला सेना का अधिकार हो गवा। कल्याण चद सपरिवार भाग कर लोहाबा के पास गैरसेन चले गये। पहली बार दुर्गम पार्वत्य प्रदेश में यवन सेनाये प्रविष्ट हुई। कूर्मांचल का अस्तित्व सकटापन्न हो गया। धर्म, सस्कृति, सहस्रो वर्ष की पूर्वजों की परम्परा खतरे मे पड गयी। सात महीने रुहीला सेना अल्मोडा मे रही। खुली लूट हुई, देवालय भ्रष्ट हुए, कला की




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