स्वामी राम तीर्थ की श्रेष्ठ कहानियां | Swami Ram Tirath Ki Shareshth Kahaniyan

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Swami Ram Tirath Ki Shareshth Kahaniyan by जगन्नाथ प्रभाकर - Jagannath Prabhakar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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259 दिखापी देती हैं । उसका अंग-अंग कितना सुदृढ़ है ! उसकी भुजाएँ कितनी बलशालो हैं !! देखकर आश्चय होता है और हर्ष भी । वह चलता-फिरता इस तरह नज़र आता है कि जैसे वह हादिक उल्लास के ताल पर थिरक रहा हो। उसे काम करते हुए सदा गुनगुनाता देखकर ऐसा जान पड़ता है, जैसे उसके मन में आतन्द-संगीत का सोता उफन पड़ा है ।” यह खुशी जिससे वह निर्धेत मालामाल था, उसका अंश मात्र भी पढ़ोसी धनवान को प्राप्त न था | उसकी सम्पत्ति--घर-बार--ऐसे सजे- संबरे हुए और भव्य थे कि अन्य लोग देखकर मंत्र-मुग्ध हो जाते थे | परंतु स्वयं उस धनवान का मन बुझा-बुझा-सा रहता था । उसने साधु महात्मा की बातें सुनकर उनकी सच्चाई का परीक्षण करने का बिचार किया । साधु महत्मा के सुझाव के अनुसार धनवान व्यक्तित ने एक दिन पड़ोसी के घर में चोरीशचोरी चुपके-चुपकेः निन्‍्यानवे (99) रुपये फेक दिये। दूसरे दिन वे क्या देखते हैं कि उस ग्ररीव पड़ोसी के घर आग नहीं जल रही थी। यह पहला दिन था कि ऐसा हुआ, जबकि उप्त निधन के महाँ प्रतिदिन खूब आग जलती थी और दिन-भर कड़े परिश्रम की कमाई से खरीद कर लाये हुए राशन को पकाया जौर खाया करते थे । परन्तु उस रात धनवान ने देखा कि पड़ोसी निर्धन के यहाँ चूल्हा नहीं जला । उसके धर खाना नही पका और वह परिवार उस रात भूखा ही रहा। दूसरे दिन प्रातः वह साधु महात्मा उस धनवान को साथ लेकर पड़ोसी निर्धन व्यक्ति के यहाँ गये और उससे पूछा कि गयी रात उसके यहाँ चुल्हा क्यों नहीं जला था । नि्वेत व्यक्ति ने साधु को सामने पाकर कोई बहाना या कोई बना- बटी बात बताने का प्रयत्व न कि या। उसने साधु महात्मा के सामने सच्ची बात वह्‌ दी। निर्धन ने बताया कि इससे पहले वह प्रतिदिन कुछ ही पैसे फमाया करता था और उन छुछ ही पैसों से सब्जी-तरकारी तथा घोड़ा-सा मादा खरीद लाया करता था। परन्तु उत्त दिन जिस दिन उनके यहाँ आग




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