ध्यान योग | Dhyana Yoga

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मन को प्रदूषण मुक्त कैसे करें २ 25 हो जाता है तो उसे लगता है कि उसे शाति मिल गई 1 प्रतिशोधी को मिलने वाली शाति नये ब्लेश का आधार बनती है क्योकि जिससे वदला लिया गया है, वह चुप नही बैठता । इस प्रकार प्रतिशोध पीढी-दर-पीढी चल सकता है । भन के प्रदूषण कँसे ह॒टें ? योगसूत्रकार मे अविद्या” को अन्य चारो क्लेशों को उपजाने वाली भूमि कहा है ।! इतना कहुकर सूत्रकार ने यह सकेत दे दिया है कि कलेशो के नाश का उपाय “विद्या! या ज्ञान है। ज्ञान के अलग अलग क्षेत्र हैं लेकिन योगदर्शन चूकि अत - करण का ज्ञान है, इसलिए इस प्रसग मे हम ज्ञान का आशय मन में उठने वाली भावनाओ का ज्ञान समझते हैं । इसी के कुछ अशो को आज मनोविज्ञान कहा जाता है। क्लुपित मन क्लुपित विचार को जम देता है। कलुपित विचार अपने आसपास बैर और कदुता वढाते हैं । कलुपित विचारो का प्रदूषण हवा, पानी और शोर के प्रदूषण से अधिक घातक है। भोपाल के यूनियन का रवाईड कारखाने की गैस से मरने वालो की सस्या से अधिक सस्या उनकी है जो मन के प्रदूषण से मरते हैं। दोनो मे अतर केवल इतना है कि बाहर के गैस काड से मरने वालो के आकडे ज्ञात हो सकते है, किंतु भीतरी गैस से मरभे बालो के आकडे अज्ञात रहते हैं । मन के प्रदूषणो को समझ लेना ही उनके निवारण का कारण बन जाता है। 4 साधन पाद 4




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